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+ सप्तमांण-उपारकदशांग सूत्र 488+
श्री उपासकदशांग शास्त्र की प्रस्तावना.
प्रणम्य श्री महावीरं, महानंदकरं मुदा ॥ उपासकदशा वार्तिकं, करोति खुबोधिकम् ॥ १॥
महा आनन्द के कर्ता श्री महावीर स्वामीजी को नमस्कार करके उपासक दशा शास्त्र के अर्थ का सब जीवों को सुख से बोध होवे इसलिये इस का हिन्दी भाषानुवाद मैं कहता हूं.
छठे अंग ज्ञाता सूत्र में धर्म कथामुयोग कहा है. और वही अनुयोग इस उपासक दशा शास्त्र में हैं. ज्ञाता धर्म कथा में अनेक दृष्टांत में से साधु की उत्तम क्रिया बताई है और इस सूत्र में श्रावक का उस्कृष्ट आचरण का कथन किया है. इसका पठन करना श्रावकों को अति आवश्यकीय होने से इसकी १०० मत अधिक निकाली गई है.
संपूर्ण उपासक दशांग का पठन करते मालुम होगा कि इतने धुरंधर श्रावकोंने किसी स्थान तीर्थकर भगवान की मूर्ति की पूजा नहीं की है. वैसे ही किसी स्थान जैन मंदिर नहीं बनाये हैं. सूत्र पाठ स्थान २ पर जो अरिहंत इय शब्द का प्रयोग है वह प्रक्षेपा हुवा है; परंतु मूल पाठ का नहीं है. (प्रसिद्ध विद्वान ए. एफ. रडोल्फ हरन पी. एच डी. ने उपासक दशांग सूत्र का इंग्रेजी में भाषांतर किया है
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444* प्रस्तावना 4984424
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