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जी पूर्व सातों मिहातो गीणी तब अग्गोघाएमि, स्त्ता ततो मसंसोहोकरेमि, रताः । आाण भरियसि कडाइयंसि अहाहमि, स्त्चा तवगात मंसेणय सोपिएणय आचामि, जहाणं तुमं अह दुहट्टे वसट्टे अकाले चेव जीबीयाओ ववरोविजासि॥५॥ तएणं से चुलामीपीए तेणं देवेणं एवं कुत्ते समाणे अभीए.जाव विहरंति॥६॥ तएणं से देव घुलनी पियं अभीयं जाव पासती दोबंपि, तच्चपि बुलणीपियं समणोशसयं एवं क्यासी-हंमो.
- सतमांग-उपाशक दशा मूत्र48+
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श्रमणोपासक से वो कहने लगा-मो चुल्लनीपिता ! जिस प्रकार कामदेव से कहा था उस ही प्रकार पावर तू जो पौधोपासादि व्रत का भंग नहीं करेगा तो में आज तेरे जेष्ठ पुत्र को तेरे घर में से पर कर यहां लावंगा, तेरे सन्मुख लाकर उसे मारूंगा, उस के मांस के तीन तुकडे करूंगा, भटी पर कडाइ चा कर उसक तैलादि से आदन आवे वैसी बनाकर उन कडाइ में मांस को तलूंगा, वह सम मसि रक्ता तेरे भरीर पर छांगा, जिस से तू आइट दोहट वश्य हो आर्तध्यान ध्याता हुवा दुःखी हुना, अकाल में है।
मृत्यु को प्राप्त होमा ॥५॥ तब उल्लनीपिता उस देवता का उक्त वचन, श्रवण करके निडर रहा, लोमिती 'नहीं दुका, स्वस्थान से चला भी नहीं पावत् पर्पध्यानमें स्थिर हो विचरने लगा ॥६॥ चुलनीपिता श्रमणो. । पासक को निर्भय यावत धर्मध्यान ध्याता हुवा देखकर वह देव दो बक तीनवक्त ऐसा बोला-मो मुलुनीपिता
चुल्लनपिता श्रावक का भूतीय अध्ययन 48
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