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+8 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 8
सामी समोसड्डेपरिसानिग्गया चुलीपिताकि जहा आणंदोतहानिग्गओ,तहेव गिहिधम्म पडिवजति॥गोयम पुच्छा,तेहेत्र सेसं जहा कामदेवस्स जाव पोसहसालाते पोसहिए बंभचारी समणस्स भगवओमहावीरस्स धम्म पण्णति उवसंपजित्ताणं विहरति ॥३॥तएणं तस्स चुलणीपियस्स समणोवासयस्स पुव्वरत्ता वरतकाल समयसि एगेदेवे अंतियं पाऊन्भवेता ॥ ४ ॥ तत्तेणं से देवे एग नीलुप्पल. जाव असिंगहाय चुलीणीपितं समणोवा
सयं एवं क्यासी-हंभो चुलणीपिया ! जहा कामदेखे जाव नभंजसी तो ते. अहं अज प्रकार चुलनी पिता भी आधारभूत यावत वृद्धि का करनेवाला था ॥ २ ॥ श्रमण. भगवन्त महावीर स्वामी पधारें,कोष्टक नामके उद्यानमें तप संयमसे आत्मा को भावते हुवे विचरने लगे परिषदा दर्शनार्थ आई, चुल्लनी पिता मायापति भी आया, धर्मकथा सुनाइ, परिषदा पीछी गइ, चुल्लनीपिता गाथापतिने आनन्द श्रावक की परेही गृहस्थकाधर्म वागवृत अंगीकार किये,गौतमः स्वामीने झन्न पूछा-दीक्षालेवेगा- क्या ? उत्तर आणंद
के जैसा ही दिया, भगवन्त विहार. कर गये, चुल्लनी फ्तिाने बडे पुत्र को गृहभार संभलाया,. आपः पौषध जशाला में आकर विशुद्ध प्रकार से धर्म ध्यान करता हुवा विचरने लगा॥शातब अन्यदाचुल्लनीपिता श्रमणो
पासक के पास अर्ध रात्रि व्यतीत हुने एक देवता प्रगट हुवा ॥ ४ ॥ तब उस देवताने कामदेव के अध्यबन में कह्म बसौ ही रूप बनाया यावत् हाथ में निलोत्पल कमल समान खङ्ग ग्रहण कर चुल्लनीपिता
. प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी
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