SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र अर्थ ·BYO सप्तगि उपायेक दशा मूत्र भंते ! अहं इमेणं उरालेणं जा धम्मणितंतए जाते, णो संचाएति देवाणुप्पियरस अति तं पाउ भवित्ताणं तिखुत्तो मुद्धाणेणं पाए अभिवंदामित्त ॥ तुम्भेण भंते ! इच्छा कारण अणभिओएणं उपवेएट, जाने देवाणुपियाणं तिक्खत्तो मुडाणेणं पाएस वदामि नम॑सामि ॥ ८१ ॥ तरुणं भगवं गाधम जेणेव आनंद समाणो वासए तेणेक उबागच्छ ॥८२॥ तत्तेणं से आनंद समणो वासए भग्रवं गोयमं तिक्खत्तो मुडाणेणं पादे बंदति णमंसति, २त्ता एव व्यासी-अत्थिणं भंते! गिहिणो गिहिमज्झे वसंतस्स Jain Education International भगवंत गौतम स्वामी को आते हुवे देखकर हृष्ट तुष्ट हुवा हृदय में आनंद पाया, भगवंत गौतम स्वामी को (वंदना नमस्कार किया और यों कहने लगा-यों निश्चय अहो भगवन् ! मैं इस उदार तप करके दुर्बल हुवा हूं यावत् नाशाजाल हुवा हूं. इसलिये अहो देवानुप्रिय ! आपके पास आकर आपके पत्रको तीन वक्त मस्तक लगा कर वंदना नमस्कार करने को समर्थ नहीं हूं. इसलिये अहो भगवन् ! आपही कृपाकर इधर पधारो, तो आपके चरण को तीन वक्त मस्तक लगा कर वंदना नमस्कार करूं ॥ ८१ ॥ तब भगवंत गौतम जहां आनंद श्रावक था तहां निकट गये ॥ ८२ ॥ तब आनंद श्रमणोपासकने तीन वक्त ॐ मस्तक लगाकर भगवन्त गौतम स्वामी के पांव को वंदना नमस्कार किया. और यों कहने लगा-अहो भगवन्! गृहस्थावास में रहते हुवे गृहस्थो को अवधि ज्ञान समुत्पन्न होता है क्या? भगवन्त गौतमने कहा- हां आनंद श्रावक का प्रथम अध्ययन For Personal & Private Use Only (www.jainelibrary.org
SR No.600255
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy