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अर्थ
46 सप्तमांग- उपाशक दशा सूत्र +
लेणं पयतेर्ण पग्गहितेणं तवो कम्मेणं सुके जात्र किसे धम्मणिसंतेजाए ॥ ७२ ॥ तरणं तस्स आणंदस्स समणोवासगस्त अन्नयाकयाई पुव्वरत्तावरतकाल समयंसी जात्र धम्म जागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झथिए ४ एवं खलु अहं इमेणं जाव धम्मणि संतिते जाते, तं अत्थितामे उट्टा कम्मे चले चिरिए पुरिसकार परकम्मे, सद्धाद्धिई संवेगे, तं जाय ताव में अस्थि उट्ठाणे सद्धाधिई संवेगे जाव मेव मम धम्मा आयरिय धम्मो सय समणे भगवं महाबीरे जिणेसुहत्थि विहरति तावता मेव सेयकले जात्र
उत्पन्न हुवा -य
{ इस प्रकार उदार प्रधान विस्तीर्ण प्रयत्नयुक्त सावधानता युक्त महातप करके शरीर से मूक गये रक्त बांस ( रहित यावत् धमनी से वने नशा जल दिखने लगी || ७२ || तब अन्यदा किसी वक्त आनंद श्रमणोपासक अर्धरात्रि व्यतीत हुवे यावत् धर्म जागरणा जागते हुवे इस प्रकार अध्यवस्याय निश्चय में इस तपश्चर्य कर सूकगया, नशाजाल दिखने लगी ऐसा अशक्त हुवा इसलिये जहांतक मेरे में उत्थान कर्म वल वीर्य पुरुषात्कार पराक्रम श्रद्धा धैर्यता संवेग है तहांतक मैं होते उत्थान कर्म बल वीर्य पुरुषास्कार पराक्रम श्रद्धा धैर्य संवेग और जहांतक मेरे धर्माचार्य धर्मोपदेशक श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी रामद्वेष का जयकर गंध हस्ति के जैसे विचरते हैं तहांतक मुझे अर्थात प्रातःकाल जाज्वल्यमान
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49 आनंद श्रावक का प्रथम अध्ययन 48
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