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________________ ३४ अमालक ऋषिजी विहरति, पढम उवासग पडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामन्गं अहातचं, सम्मकाएणं . फासेति पालति, सोहेति, तीरति कित्तति आराहेति ॥ तत्तेणं से आणंदे समोवासए दोच्चं उबासगपडिमं एवं. तचं, चउत्थं, पंचम, छटु, सत्तमं, अट्ठमं, नवमं, दसमं, एक्कारसम, जाव आराहेति ॥७॥ ततेणं से आणंदे समणोवासए इमेणं एतारूवेणं प्रतिमा-उक्त गुणयुक्त आठ महिनेतक आपस्वयं आरंभकरे नहीं, ९ पेसारंभ-उक्त गुणयुक्त नव महीने तक अन्य के पास आरंभ करावे नहीं, १० अनारंभ-उक्त गुणयुक्त दश महीने तक अपने वास्ते प्रारंभ किया हो उस वस्तु को ग्रहण करे नहीं और ११ समण भूत प्रतिमा-उक्त गुणयुक्त इग्यारे महीने तक साधु जैसा भेष धारन करे, पांचसमिती युक्त विचरे, सिरमुंडन करावे, शिखारक्खे, स्वयं कुल में गौधरीकरे, E कोइ पूछेतो कडेकि में प्रतिमा बाहक अपणोपासकहूं * यों अनयोगद्वार सूत्रानुसार इग्यारेही प्रतिमा प्रतिज्ञा सूत्रोक्त विधी प्रामने, श्रावकके कल्प प्रमाने, जैन मार्गकी रीति प्रमाने, यतिथ्य सम्यक् प्रकारपाल स्पर्शा शुद्ध पार पहोंचा कीर्ति मुक्त भगवंत की आज्ञाका आराधन किया * ॥ ७१ ॥ तब आणंद श्रमणोपासक * पहिली प्रतिमा में में एक महिने तक एकान्तर उपवास दूसरी, में दो महिने तक बेले २ पारना यावत् इग्यारवी प्रतिमा में इग्यारे महीने तक इग्यारे २ उपवास के पारने करे ऐसा बुद्धकथन हैं. ___+ प्रथम आकाश से ग्रहण किये हुवै पानी सिवाय अन्य पानी पीने का नियम किया था उस नियम का प्रतिमा में भी पालन किया, जो वैसा पानी उष्ण किया ब धोवन किया मिलता उसे ही ग्रहण करते, अन्य नहीं. . प्रकाशक राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालामसादनी अनुवादक-बालब्रह्मचा १ For Personal & Private Use Only www.iainelibrary.org Jain Education International
SR No.600255
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size18 MB
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