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________________ 42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी जैतपीलणकम्मे, निलंछणकम्मे, दवग्गिदावणया, सरदह तडाग परिसोसणिया, अस. ईजण पोसणया ॥ ५१ ॥ तदाणं तरंचणं अणदण्ड वेरमणस्स समणोवासएणं पंचअइयारा जाणियव्वा नसमायरियब्वा तंजहा-कंदप्पे, कुक्कुए, मोहरिए, संजुत्ता हिकरणे, उवभोग परिभोगातिरत्ते ॥ ५२ ॥ तदाणं तरंचणं सामाइयस्स समणो वासएणं पंचअइयारा जाणियवा नसमायग्विव्या तंजहा-मण दुप्पणिहाणे, वय । यंत्र पीलन कर्भ-पही ऊखल चरखे कोल्हू धानी मीउ गिरनी आदिका व्यापारकरे, १२ निलंछन्न कर्म घेल अश्वादि का पुरुष चिन्द का छेदन-मर्दन करे, अङ्गो पाङ्ग के छेदने का व्यावार करे, १३ वन में खेतमें आनि लगाने का कर्म करे १४ तलाव कूप वादही आदि सरोवर के पानी उलीचने का व्यापर करे, और १५ अससिजन-स्त्रीयों का पोषन कर उनके पार दिया जैसे कर्म करा उनकी कमाइ का द्रव्य आप ग्रहण करे, या कुत्ते बिल्ली सिकारी बना उनका व्यापार करे, ॥५१॥ तदनन्तर आउया अनर्थ दंड: बेरमान व्रतके पाच अतिचार जाने परंतु आदरे नहीं उनके नाम-१ कंदर्प-कामराग जागृत होवे ऐसी कथा करे, २ भांउ जैसे अंग की कुचेष्टा (उपहास्य) करे, ३ पुव अरी-वैरी जैसे (पर्मिक) वचन बोले, ४ अधिकरण-हथीयार को संयुक्त करे, मंयोग मिलाव, इक और ५ उपभोग परिभोग में अतिरक्त बने ॥५२॥ तदनन्तर नववे सामायिक त के पांच अतिवार जाने परंतु आदरे नहीं, उनके नाम-१ मन से • प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेव सक्षयजी ज्वालाप्रसादनी. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600255
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size18 MB
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