SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री अमोलक ऋषिजी + साणिगया अब पडिगया ॥ २८॥ गन्यमाइ, समणे भगवं. महावीरे एवं यासी...." एवं खलः मोयमा ! इहेव रायमिहे: जयरे मम अंतेवासी महासयए णाम समणोवासए पोसहसालाए अपच्छिम मारणंति संलहणाए झोसीए सरीरे, भत्तपाणं पडियाइक्खिए है कालं अणवकंक्खमाणे विरई॥ तर्पणं तस्स महासयमस्स रेवईए मत्ता जाव उत्तरियं. विकमाणी जेणेव पोसहसाला जेणव महासयए तेणेष उवागए, महोम्मायं जाव एवं' :. 4 वयासी तहेव जाव दोचपि तच्चंपि. एवं क्यासी,तएणसे महासयए समणोवासए रेवईए गाहावयणीए दोश्चंपि तच्चंपि एवं वुत्ते समाणे आसुरुत्ते ४ ओहिणा आभोएइश्ता मार्थ धर्मकथा श्रवण कर परिषदा पीछी गई।२सागौनम स्वामी से श्रहण भगवन्त पक्षपीर स्वामी ऐसाबोले यो निश्चय, हे गौतम ! इस ही राजगृही नगरी में मेरा अन्तेशमी महाशतक श्रमणीयासक पौषधशाला में आपश्चिम मारणान्तिक मलेषना झोसना कर आहार पानी का परित्याग कर-काल मृत्यु की क वांछा नहीं करता हुवा-विचरता है. उस सहाशतक की पत्नी रेवती काम से मदमस्तवन बस को शरीर से अलग डांसती हुई विकल बनकर जहां पौषद शाला थी जहां महाशनक था-तहो आई कामसे मस्तबनी हुई यावत् दो तीन वक्त बचन कहे, उसे श्रवण कर महाशतक असुरक्त हुवे, अवधीज्ञान से देखा. रेवती 17 से यों कहा यावत् नरक में उत्पन्न होगी.हे गौतम-श्रमणो पासक को यावन् अपश्चिम मरणान्तिक सलेपना । .प्रकाशक-राजाबहादुर साला मुखदेवसहायनी ज्वालाप्रसादजी MAA Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600255
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy