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3 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
संते तंते परितंते पोलासपुरतो पडिमिक्खमइ २त्ता,बहिया जणवयं विहारं विहरंति॥४॥ तएणं तस्स सहालपुत्तस्स समणोवासयस्स बहुहिं सील जाव भावमाणस्स चौदस्स संवच्छराई वीतिकंताई पन्नरसमस्स संवच्छरस्स अंतरावमाणस्स पुवरत्तावरत्तकाले समयंसि जाव पोहसहसालाए समणस्स भणवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णंति उवसंवजित्ताणं विहरंति ॥ ४९ ॥ तएणं तस्स सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस अतिए पुव्वरत्तावरत्त कालसमयंसि एगेदेवे पाउम्भवित्था ॥ ५० ॥ तएणं से देवे एगं महंनिलुप्पल जाव एवं वयासी-जहा चुलणीपीयस्स तहेव देव उवसग्गं करात, णवरं नगर से निकल कर बाहिर जनपद देश में विचरने लगा ॥ ४८ ॥ तब उस सद्दाल पुत्र को बहुत ही सीलवत गुन व्रतों कर आत्मा को भावते हुवे विचरते चौदह वर्ष व्यतीकृन्त हुवे, पनरहवा वर्ष के अन्तर में वर्तते आधी गनि व्यतीत हवे से आनंद श्रावक के जैसा विचार किया यावत् बडे पुत्र को घर का भार सुपरत कर पौषधशाला में जाकर श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी प्रणित धर्म धारन कर विशुद्धी पूर्वक पालता हुवा विचारने लगा।॥४९॥तत्र सद्दाल पुत्र श्रमणोपासक के पास आधीरात्रि व्यतीत हुवे एक देवता प्रगट हुवा ॥५०॥कामदेव के अध्ययन में कहे मुजब रूप बनाकर निलोत्पल कमल समान खङ्ग हाथ में धारन कर यावतू यों कहने लगा-जिस प्रकार चुल्लनीपिता को कहा था तैसा हो सब जानना, उस ही
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायना ज्वालाप्रसादजी.
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