SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र अर्थ 4886 सप्तमांग उपाशक दशा सूत्र 486 गुण कित्तणं करेहि तम्हाणं अहं तुब्भे पडिहारिएणं पीढ जात्र संथारषणं उबनिमंतेमि, नो वेणं धम्मेतिवा, तशेतिवा ॥ तंगच्छहणं तुम्भे मम कुंभारावणेसु पाडिहारिए पीढफलयं जाव ओगिहिताणं उवसंपजित्ताणं विहरह ॥ ४६ ॥ एणं गोसाले मंखलीपुत्ते सद्दालपुत्तस्स समोवासयस्स एयम परिसुणेइ २त्ता, कुंभकारवणासु पाडिहारियं पीढपलग जाव उवसंपजित्ताणं विहरति ॥४७॥ ततेणं से गोसाले मंखलीपुत्ते सद्दालपुत्तं समणांवासस्स जानो संचाएति बहुहिं आघवणेहिय पण्ण्रवणेहिय, सण्णबणाहिय, विष्णवणाहिय परुवणेहिय, निग्गंथातो पावयणातो संचालितएवा रवोभित्तएवा विष्परिणामित्तए।, ताहे यथा योग्य भावों-गुनों का यथा उचित कथन किया, गुन कीर्तन किया, इसलिये मैं तुमको पाडीहारे पाटपाटले { स्थानक विछोना की आमंत्रण करता हूं, किन्तु निश्चय धर्म के लिये, व तप-निर्जरा के लिये नहीं करता हूँ{ इसलिये जावो तुम मेरी कुंभकारकी दुकानों से पाडीहारे पाटपाटले मकान जो चाहिये सो अंगीकार कर { विचरो ॥ ४६ ॥ तत्र गौशाला मंखली पुत्रने सद्दाल पुत्रका उक्त कथन मुना-मान्य किया, उस की दुकानों से पाटपाटले यावत् अंगीकार कर विचरने लगा ॥४७॥ तत्र गौशाला मंखली पुत्र सद्दाल पुत्र श्रमणोपासक से अनेक प्रकार के { प्रश्नोत्तर किये परन्तु कहने से प्ररूपने आख्यान व्याख्यान और नम्रता से सद्दाल पुत्र को निर्ग्रन्थ प्रवचन { से चलाने क्षोभ उत्पन्न करने, विपरीत परिणमाने, समर्थ नहीं हुवा, तब थका बहुत ही थका निराशहो पोलास पुर Jain Education International For Personal & Private Use Only + सद्दालपुत्र श्रावक का सप्तम अध्ययन 48 १२७ www.jainelibrary.org
SR No.600255
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy