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4. अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
याणं विहरति ॥ १५ ॥ तचेणं सद्दालपुत्ते आजीविओवासए अन्नया कयाई बारा हयंवा कोलालभंडं अंतोसालाहितो बहियानीणेति २ त्ता आयसि दलयंति ॥१६॥ तत्तेणं समर्णभगवं महावीरे सहालपुत्तस्स आजीवियंओवासयस्स एवं क्यासी सद्दालपुत्ता! एसणं कोलालभंडे कओ ? ॥ १७ ॥ तत्तेणं सद्दालपुत्त समणं भगवं महावीरं एवं वयासी-एसणं भंते ! पुर्वि मट्टिया आसी, तओपच्छा उदएणं मिमिज्जति २ त्ता छारेणय करिसेणय एगयओ मीसिज्जतिए २त्ता, चक्के आरुहिजति, तत्तोवहवेकारगाय
जाव उवट्टियाओय कजंति ॥१८॥ तत्तेणं समणे भगवं महावीरे सदालपुत्तं आजीवि विचरने लगे॥१५॥ तब महालपुत्र आजीविका उपाशकने अन्यदा किसी वक्त वायु में सूर्य के आताप में सुकाने वरतनो अंदर मकान में से निकाल कर बाहिर रक्खे थे. धूप के आताप में दिये थे ॥१६ तब श्रमण भगवंत महावीर स्वामी सदालपुत्र आजीविका उपासक से ऐसा बोले-हे सद्दालपुत्र! यह मट्टी कैसे बने हैं ? ॥ १७ ॥ तब सदालपुत्र श्रमण भगवंत महावीर स्वामी से यों कहने लगा-अहो भगवान ! यह प्रथम पट्टीरूपये, उम मट्टीको पानी में मिलाइ छारलीद उस में मिश्रितकर खंदकर चाकपर चढाइ, तब बहुत लोटे यावत् कुंटाकार वरतन बने । १.८ ॥ तव प्रमण भगवंत महावीर स्वामी सदालपुत्र से आजीविका उपाशक
. प्रकाशक- जांबडादर लाला मुखदेवमहायजी जालापमादजी
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