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तोकम्मं संपया संपउत्ते, तं सेयं खलु ममं समणं भगमं महावीरं बंदिचा नमंसित्ता; पाडिहारिएणं पीढफलग सेजासंथार जाव उवनिमंतिर, एवं संपेहेतिरत्ता उट्ठाए उ8. तिरत्तासमर्ण भगवं महावीर वंदति नमंसतिरत्ता एवं वयामी-एवं खलु भंते ! ममं पोलास पुरस्स नगरस्स बहिया पंचकुम्भकारा वणसया तत्थणं तुब्भे पाडिहारियं पीढफलग जाव संथारयं ओगिहिस्ताणं विहरह ॥ १४ ॥ ततेणं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तस्स आजीवि ओबासग्गरस एयमढें पडिसुणेतिरत्ता, सद्दालपुतस्स अजीविओवासम्ग
स्स पंचकुंभकारावणसयेसु फासूएसणिजं पाडिहारियं पीढफलग जाव संथारयं ओगिणिपाडिहारे पाटपाटले स्थानक बिछाना की आमंत्रना करना श्रेय है, यों विचार कर उस-बडा हवा, खडा हो श्रमण भगवन्त महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर यों कहने लगा-यों निश्चय, अहो
भगवन् ! पोलास पुर नगर के बाहिर मेरी पांच सो दुकानों हैं, उन में से आपको पाहिहारा पाटपाटले or शैय्या संथारक रजोहरण वगोरा चाहिये सो ग्रहण कर विचरना ॥१४॥ तब श्रमण भगवंत महावीर स्वामी
सदालपुत्र आजीविका उपासक का उक्त कथन मुना-मान्य किया, सदालपुत्र की पांचसो कुंभकार की | दुकानों में से प्रासुकनिर्जीव एषणिक-निदोष पाडिहारा पाट पाटला स्थानक विछोना-पराल ग्रहण कर
सप्तमांग-उपाशक दशा सूत्र
88सदालपुत्रं श्रावक का सम्म अध्ययन 48+.
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