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________________ । अनुवादक- लिब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी + नो संचाएति कुंडकोलीए समणोवासबस्स किंचि पामुक्ख मातिक्वितित्ते, नामसुदयं । उत्तरिजयंच पुढविसिलाषटए ठवेइ २ सा जामेय दिसिंपाउञ्भूया तामेवदिसि पडिगयां ॥ ८ ॥ तेणंकालेणं तेणंसमएणं सामीसमोसड्डे ॥ २ ॥ तत्तेणं से कुंडकोलीए इमीम कहाएलट्ठे हट्ठ तुढे जहा कामदेवो तहा निग्गच्छति जाव पाजुवासति ॥धम्मकहा। कुंडकोलीयाइ, समणे भगवं महावीर कुंडकोलिय समणोवासयं एवं क्यासी-सेनणं कुंडकोलिया! कल तुम्भं पुवावरण्ड कालसमयंसि(पा. पवस्त्तवस्त्त कालसमयंसि) उक्त अर्थ श्रवण कर शंकित हुवा कांक्षित हुवा भ्रमर जाल में पहा यावत् चित्त में कलुषता भाव उत्पन्न हो. कुंडकोलिक श्रावक को किंचित भी प्रत्युत्तर देने समर्थ नहीं हुवा,वह नाम कित मुंद्रिका और वख पीछे ही स्थान मिलापर रक्खकर जिस दिशा से आयाथा उसदिशाा पीछा चलागया | उस काल उस समय में श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी पधारे ॥२॥ तब कुंडकोलिक श्रव भगवंत आगम सुन खुशी हुका जिस प्रकार कामदेव दर्शन करने आया था तैसेही कुंडकोलिक भी आया यावत् सेवा करने लगा. भगवंतने धर्म का कही,फिर सर्व परिषदा के सन्मुख कुंडकोलिक से श्रमण भगवन श्री महावीर स्वामी यों कहने लगे हे कुंड कोलिक ! काल तुमारे पास मध्यान्ह काल में (स आधीरात्रि व्यतीत हूँ के) अशोक. वाडी में एक , काश बाबहादुर लाला मुखवसहायजी बालाप्रसादजी. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600255
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size18 MB
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