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________________ के 4:-*सहयोग-उपासक दशा सूत्र 488+ ३ जाव अणुट्ठाणे जाव अपुरिकारपारक्कमेवा ला पचा अभिमनाथमा ॥ जेसिणं जीवाणं नत्थि उट्ठाणेइवा जाव परकमेइवा तर्किणं देवा ? अहेणं देवाणुप्पिया ! "तुमे इमाएयारुवा दिव्वादेविठ्ठी ३ उट्ठाणेणं जाव परक्कमेणं लापत्ता अभिसन्नागया; एव न भवति तो जंवदसि सुंदरीणा गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स धम्मपण्णसी, जत्ि "उठावा जाव नितीया सन्व भावा मंगुलीणं ? समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपणती अस्थि उट्ठाईवा जाव अणित्तया सव्वभावा तं ते मिच्छा ॥७॥ तरणं से देवे - कुंडलिएणं समण वासएणं एवंवृत्ते समाणे संकीए जाव कलुससमावण्णे, की देवता की ऋद्धि बिना उत्थान कर्म वल वीर्य पुरुषात्कार पराक्रम से मिली है, वो मिन उत्थान कर्म दल बीर्य पुरुषात्कार पराक्रम नहीं है अर्थात् जो जीव तपर्सवमादि करनी नहीं करते हैं जीव देवता क्यों नहीं होजाते हैं, इस लिये हे देवानुमिय: तेने यह दिव्य देव सम्बन्दी ऋदि सुवि {इस्थादि जो श्राप्त की है वह उत्थान यावत् पराक्रम से ही उपलब्धन्यास हुई है और इस लिये हे देवानुप्रिया ! जो सु बोला कि गोसला मंखली पुत्र का धर्म बहुत अच्छा है. बिना उत्थानादि, का नीयत भाव मामाने होता है और श्रमण भगवम्त श्री महावीर का रूप्पा धर्म उत्थानादि बुक यावत् अनीयत भाष का बुरा है. यह तेरा कहना मिथ्या है ॥ ७ ॥ तव देवता कुंडकोलिक श्रमणोपासक का जीवों के Jain Education International For Personal & Private Use Only ++++ कुँडकोलिक श्रावक का पहन अध्ययन 44 www.jainelibrary.org
SR No.600255
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size18 MB
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