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________________ सप्तमांग-उपाशक दशा मृत्र 498 अर्थ देवाणुप्पिया ! गोसालस्स मक्खलिपुत्तरस धम्मपण्णत्ती, नत्थिउट्ठाणेइवा, कम्मेइवा, बलेइवा,विरिएइवा,पुरसकारपरक्कमेइवा जाव नियतासव्वभावा, मंगलीणं समणस्स भगवओमहावीरस्स धम्मंपण्णत्ती अत्थिउठाणेइवा जाव परक्कमेइवा,अनित्तयासब्वभावा ॥४॥ तत्तेणं से कुंडकोलिए तं देवं एवं वयासी-जइणं देवाणुप्पिया ! सुंदरी गोसालस्स मंखलि पुत्तस्स धम्मं पण्णत्ती, णत्थि उट्ठाणेवा जाव णितए सव्व भावा, मंगुलीणं समणस्स भगवओ महावीररस धम्म पणत्ती अस्थि. उट्ठाणेईवा जाव अणितया जैसा नियत भाव होनहार होता है तैसा ही होता है. और श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी प्ररूपित धर्म अहित कारी है; क्यों कि जिसमें उत्थान कर्म बल वीर्य पुरुषाकार पराक्रम है. अर्थात् सर्वकार्य उद्यम किये सेही होते हैं, ऐपा अनियत भाव है, ॥ ४ ॥ तब कुडंकोलिया श्रावक उस देवतासे ऐसा बोला-यादे हे देवानुप्रिय ! गौशाला पखली पुत्र प्ररूपित धर्म बहुत १ अच्छा है क्यों कि जिस में उत्थान कर्म बल वीर्य पुरुषात्कार कुछ नहीं है, सब काम होनहार मुजब ही होता है ऐसा नियत भाव है, और श्रमण भगवंत महावीर स्वामी के मरूपित धर्म 4 है या नहीं ! ऐसा अजमाना वह बल, ४ उठान. वह वीर्य, ५ स्कंध मस्तकादि चिन्तित स्थान रखना वह पुरुषात्कार, .. और जिस स्थान रखना है पहोंचादेना वह पराक्रम, कुण्डकोलिक श्रावक का षष्ठम अध्ययन कर 482 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600255
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upasak Dshang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages170
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_upasakdasha
File Size18 MB
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