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49 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
समयसि (पाठान्तर-पुन्धरत्ता वरत्तकालसमयसी)जेणेव अमोगवणिया,जेणेव पुढविसिला पट्टए तेणेव उवागच्छइ २ त्ता, नाममुद्दगंच उत्तरिजंगंच पुढवीसिलापट्टए ठवेइ २त्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स अतियं धम्मं पण्णंति उवसंपजित्ताणं विहरंति ॥ २ ॥
तएणं तस्स कुंडकोलियरस समणोवासयस्स एगदेवे अंतियं पाउभवित्ता ॥ ३॥ तएणं . से देवे णाममुदगंच उत्तरियंच पुढवीसिला पट्टयाओ गिण्हति २ त्ता संखिखिणीयं ___ अंतलिक्खं पडिवन्ने कुंडकोलियं समणोवासयं एवं क्यासी-हंभो कुंडकोलिया! सुंदरीणं किसीवक्त मध्यान्ह काल (दोपहर) में कितनेक कहते हैं अर्धरात्रि व्यतीतहुवे) जहां आशोक बडीमें पृथ्वीसिलापट्ट था,तहां आया,आकर नामांकित मुद्रिका और उतारने योग्य वस्त्रको उतार कर एकान्तमें रक्खे, रक्खकर श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी के पास धारन किया धर्म को अङ्गीकार कर विचरने लगा ॥२॥ तब उस कुडकोलिक श्रावक के पास एक देवता प्रगट हुवा ॥ ३॥ तब वह देवता पृथ्वीसिला पट्टके ऊपर रखे हुवे नामांकित मुद्रिका और वस्त्रों उठाकर घुपरीयों घपकाता हुवा आकाश में ख़डारहा और कुंडकालिक श्रमणो पासक से यों कहने लगा-मो कंडकोलिया श्रमणो पासक ! गौशाला मंखली का कहा हुवा धर्म बहुत अच्छा है क्यों कि जिस में उत्थान-कर्म * बल-वीर्य-पुरुषाकार पराक्रम नहीं हैं।
* किस बजन दार वस्तु को उठाने का विचार करना वह उत्थान, २ उस के सन्मुख जाना व कर्म, ३ उठेगा ।
मश राजावहादुर लाला सुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
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