________________
वेणं, ता जयाणं सरिए सव्वभंतर मंडलं जाव चारं चरति तयाणं पंच जोयण सहस्साति दोणिय एकावण्णे जोयणसते एगृणतीसं सठि भागे जोयणस्स एगमेगेणं मुहु. त्तेणं गच्छति॥तयाणं इहं गतस्स मणुसस्स सतालिसाते जोयणसहस्सातिं दोहि तेवट्ठीहिं जोयण सतेहि एकवीसा रुट्ठिभागे जोयणस्स चक्खुफासं हवमागच्छति ॥ तयाणं उत्तम जाव दिवसे भवति, जहणिया दुवालस मुहुत्ता राई भवति ॥ ३ ॥ से निक्खममाणे सुरिए, णवं संवच्छरं अयमाण पढमंसि अहोरत्तसि अभंतराणं
तरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति ता जयाणं सूरिए अब्भतराणं मंडलं उवसं
१३१५०८९ योजन की है उसको ६. का भागदेने से ५२५१ योजन पूर्ण आवे शेष २९ रहते. इस समय अर्थ
यहां भरत क्षेत्र के मनुष्य को ४७२६३. योजन दर में सूर्य देखने में आता है. प्रथम मंडलपर अठारह मुहूर्न का दिन है और एक २ मुहूर्व में ५२५१ भाग चले. इस से इन को १८ से गुना करने से एक दिनमें९४५२६.योजन चले, इस के अर्थ भाग से द्रष्टिगोचर होने से इस आधे ४७२६३. योजन होवे. उप्त समय अठारह मुहूर्त का दिन व जघन्य बारह मुहूर्न की रात्रि होती है ॥३॥ अब वहां से नीकलता हुवा
सूर्य नविन संवत्सर में प्रवेश कर के प्रथम अहो रात्रि मे आभ्यंतर मंडल से अनंतर दुसरे मंडल पर 1रहकर चाल चलता हैं. जब सूर्य दमरे मंडल पर रहकर चाल चलता हैं. तब पांच हजार दो सो
42 अनुदक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अपोलक ऋषिजी -
.प्रकाशक-राजावादुर लाला मुखदरमहायजी ज्वालाप्रसादजी.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org