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सप्तदश चद्रं प्रज्ञप्ति सूध पष्ठ-अपाङ्ग
मुहत्ते दिवसे भवति जहणिया दुधालस मुहुत्ता राई भवति ॥ तेसिंचणं दिवससि एकाणउति जोयण सहस्साति ताव खत्ते पण्णत्ते ॥ ता जयाणं सरिए सम्व बाहिरं मंडलं जाव चार चरति तयाणं उत्तम कट्रपत्ते उकोसिया अवारस महत्ता राई भवति जहण्णए दुवालस मुहुत्ते दिवसे भवति ॥ तेसिं चणं दिवसंसि एगट्ठी. जोयण सहस्लाई ताव खत्ते पण्णत्ते, तयाण छवि पंचवि चत्तारिवि जायण सहस्साति एगमगेणं मुहुत्तेणं गच्छति, एगे एव मासु ॥ ४ ॥ २ ॥ वयं पुण एवं वयामो तासाति रेगाय पंच २ जोयणसहस्सातिं सुरिए एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छति, आहि
तेति वदना ॥ तत्थणं को हेउति वदेज्जा ? ता अयगं जंबूद्दीवे दीवे जाव परिकावे ४ हजार और शेप नव युद्ध के ४५ हजार यों एवमीला कर १२४४४४५६१ हजार योजन होते हैं। ॥ २॥ इम कथन को मैं इस प्रकार करता हूं कि सूर्य एक २ मुहू में पांच हजार योजन से कुछ अधिक चलता है. इस में क्या है? यः जम्दीप यावत् परिधिवाला है. जब मूर्य सब से आभ्यन्तर मंडल : रहना है हमार्ग पर हजारझलो एकादायोजन व एक योजन के माठीये गुततीम भाग (५२५१ ) इतना एक मुहूर्त में चलता है. क्यों कि दो सूर्य एक अहोरात्रि में एक संपूर्ण मंडल पर चलते हैं. इस से दोनों सूर्य के ६० मुहूर्न होते हैं और प्रथम मंडल की परिधि व्यवहार नय से
दूसरा पहुई का तीसरा अंतर पाहुडा
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