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सूत्र 3
__ करेति २ त्ता, उत्तर लोगं तामेवरातो सेणं उत्तरद्वं लोगंतिरियं करेंइ २ 'ता
दाहिण, लोग तामेवरातो सेणं इमाति दाहिणत्तरड लोगाइं तिरियं करेइ २त्ता परस्थिमिल्लातो लोगताओ बहूति जोयणतिं तंचव जाव उड्ढें उप्पतित्ता दृरं, एत्थणं पातो सरिए आगासातो उत्तिति एगे एव माहं ॥ ८ ॥ वयं पुण एवं वयामो-ता जंबूदीवरस २ पाईण पडीणायताए उदिणादाहिणायताए जीवाए मंडलं चउविसेणं सतेणं छत्ता दाहिणंपुरथिमसिया उत्तरपञ्चत्थिमंसिया चउभाग मंडलंसि इमीसेणं
रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिजातो भूमिभागातो अट्ठजोयगसयाति उड्ड लोक के अंत से बहुत योजन, बहुत सो योजन बहुत गहन गोजन ऊंचा जाकर प्रभात समय सूर्य आकाश में रहा हुना तीर्छा दक्षिणार्थ में प्रकाश करता हुवा उत्तरार्ध में जाता है. जब दक्षिणार्ध में दिन होता है तब उत्तरार्ध में रात्रि होती है और जब उत्तरार्ध में दिन होता है तब दक्षिणार्ध में गति होती है. इस तरह दक्षिणार्ध व उत्तरार्ध दोनों में तीन प्रकाश करता हुवा दिशा के लोरांत से बहुत योजन, बहुत सो योजन व बहुत सहस्र याजन दूर आकाश में प्रकाश करता हुवा रहता है. इस कथन को हम ऐसे
कहते हैं. कि इस जंबद्वीप नामक द्वीप में पश्चिम की रेखा व उत्तर दक्षिण की जिव्हा अर्थात् सूर्य 16के विमान को गमन करने के मंडल को १२४ भाग से उदकर चार भाग करना. तद्यथा-अनि:।
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
• प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुख्दकमहायजी ज्वालापसादजी.
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