SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दिक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमेलक ऋषिजी 80 बुद्धि अभिवढेमाणे २ सध्यबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चार चरंति, जयाणं मरिए सब जाव चारं चरति, तयाणं मंडलवया अडयालीसंच एगट्ठी भाग जोयणस्स बाहल्लेणं एगं जोयण सयसहस्सं छच्चसट्ठीजोयण सते आयामविक्खंभेणं तिन्नि जोयण सयसहस्सति अट्ठारससहस्साति तिन्नियपण्णरमुत्तरं जोयगमते परिक्खयेणं, तयाणं उत्तम कट्टपत्ते र ई भवति, जहण्गते दुवालस मुहुत्ते दिवसे भवति ॥ एसणं पढमे छम्मासे, एसणं जाव पजवासणे, ॥ २ ॥ से पविसमाणे से उपर्यक्त९१५ में मीलाने से१०२० योजन की लम्बाइ यौटाइकी वृद्धि हुड,इम प्रथम मंडल के १९६५ योजन में मीलाने से १००६६० हावे. यह अंतिम मंडल की लम्बाइ चौडाइ का प्रमाण जानना. अब परिधि का कहते हैं बाहिर के मंडलकी परिधि:००६६० योजन की है. इस का वर्ग १७१३२४३५६०० हावे, इम को दश गुना करने से १.१३२४३५६... होवे. इस का वर्ग मूल नीकाले तब ३१८३१४ योजन होवे इस की छद राशी ५५३४०४ होती है और भागाकार राशि ६३६६२८ होती है इम से पनरह योजन से कुच्छ कम होवे; परंतु सूत्र कर्नाने व्यवहार नयसे पूर्ण पनरह लिया है. उस साय उत्कृष्ट अठारह मुहूर्न की रात्रि व जघन्य बारह मुहूर्त का दिन होना है. यह प्रथम छमास व प्रथम छमामले का पर्यवसान हवा. ॥२॥ वहां से प्रवेश करता हुना मर्य दूसरे छमास बनामा हु। पहिली अहोरात्रि में • प्रकायाक-राजाबहादुर लाला मुखदेव महायगी मालामपादनी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy