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________________ मत्र maraananmins सप्तदश चद्रं प्रज्ञप्ति सूत्र षष्ठ-उपाङ्ग 418 एगट्टी भागे जोयणस्स अयामविक्खंभेणं तिन्नि जोयण सयसहस्साई पण्णरस सहस्साई एगच पणवीसं जोयण सयं परिक्खेवेणं,तयाणं अट्ठारस मुहुत्ते दिवसे भवति चउहिं एगट्ठी भाग ऊणे दुवालस मुहुत्ता राई भवति चउहिं आहिया।एवं खलु एतेण उवाएणं निक्खममाणे मूरिए तयाणंतर मंडलाओ मंडलं उवसंकममाणे २ पंचजोयणाई पणतीसंच एगट्ठी भागे जोयणस्स एगमेगेगं मंडले विक्खंभ बुड्ढि अभिवढेमाणे अट्ठारस २ जोयणाई परिक्खेवेणं समय एकसठिये चार भाग कम अठारह मुहूर्त की रात्रि होती है और चार भाग अधिक बारह मुहूर्त में का दिन होता है. इस तरह नीकलता हुवा सूर्य एक मंडल से दूसरे मंडलपर जाता हुवा ५: योजन की एक २ मंडलं में लम्बाइ चौडाई की वृद्धि करता हुवा और परिधि में अठारह योजन की वृद्धि करता हुवा सब से बाहिर के मंडलपर रहकर चाल चलता है. जब मूर्य सब से बाहिर के मंडलपर चाल चलता है। तब वह मंडल एक योजन के एकसठिये अडतालीस भागका जाडा है, एक लाख छ सो छासठ(२००६६०) योजन की लम्बाइ चौडाइ वाला है. इम में पहिला मंडल छोडकर शेष १८३ मंडलपर सूर्य चाल चलताहै.4 प्रत्येक मंडलं में योजन की लम्बाई चौडाइ की वृद्धि होती है. इस से ५ को १८३ से गुना करने से १९१५ योजन होवे और ३५ को १८३मे गुना करने से ६४०५ भाग होवे उसे ६१ का भाग देने से १०५होवे। + पहिला पाहड का आठवा अंतर पाडुडा 48+ 428 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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