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4. अनुवादक-वाला मामी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
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बाहिरातो सबभतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरति, तयाणं सव्व बाहिरं मंडलं पणिहाय एगमेगेणं तेसिय रातिदियसतेणं पंचसुत्तरे जोयणसए विकंपइता चारं चरति, तयाणं उत्तम कट्टले दिवसे भवति, जहणिया दुवालस मुहुत्ता राई भवति ॥ एसणं दोच्चे छम्मासे, एस दोच छम्मासस्स पजवासणे, एसणं आइच्चे संवच्छरे, एसणं आइच्चस्स संवच्छरस्स पज्जवासण ॥ इति पढमस्स ट्ठय चंदपण्णात्तस्स पाहडं सम्मत्तं ॥ १ ॥ ६॥ * * * ताकहं ते मंडलसठिति आहितेति वदेजा ॥ तत्य खलु इमातो अट्ठ पडिवत्तीओ पणत्ताओ तंजहा-तत्थएगे एवं मानु ता समचउरंस मंडलं संठियाणं मंडलं संठिति चाल चलता है. उस समय उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन व जघन्य बारह महूर्त की राशि होती है. यह दूसरा छमास का पर्यवासान हुवा. यह अदित्य संवत्सर का पर्यवसान हुआ. यह पहिला पाहुडे । का छठा अंऔर पाहुडा मंपूर्ण हुवा. ॥ १ ॥ ६ ॥ ___ अब सावा और पाहुडा मंडल के संस्थान आश्रीय कहते हैं: अहो भगवन ! मंडल का संस्थान किस प्रकार कहा है ? उत्तर-इस कथन में अन्यतीथि की प्ररूपणा रूा आठ पडिवत्तियों कही है. तद्यथा-१ कितनेक ऐसा कहते हैं कि समचतुत्र संस्थान बाला मंडल कहा
प्रकाखक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.
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