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4. अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री
शिष्य कविवरेन्द्र परमोपकारी महात्मा मुनिराज श्री नागचन्द्र जी महाराज का ही है. इन महात्माने एक बत अर्थ वाली शुद्धलिपी दाली अपने पास की चन्द्र प्रज्ञप्ती की प्रत भेगी, तैसे ही परम प्रयास कर अहमदाबाद के भंडारमें रहे हुवे अष्ट कोटी दरियापुरी सम्प्रदाय के परमपूज्य रघुनाथजी महाराज के घिद्ध शि रोमणि, गणितानुयोग विशारद महापुरुष श्री हाथीनी स्वामीजी के परक प्रयास से लिखे हुवे बहुत ही खुलासा और यंत्रो के चन्द्र प्रज्ञप्ति की गुटके ( पुस्तके ) यहां भेजबाइ, उन के आधार से इस म प्रकार खुलासे सहित इस का उतारा कर सका हूं. तैसे ही गौणताणें भीनासर के सेठ हजारीमलज, बांठीया की तरफ से प्राप्त हुई प्रत की भी सहाय ली गई हैं. हमारे जानने में तो यथा बुद्धि बहुत खुलासा किया है तद्यपि इस के मूल में अशुद्धीयों का संभव रहा है क्योंकि इस प्रकार इस हस्त लिखित प्रतीयों भी क्वचित उपलब्ध होती है. इसलिये विट्टर सुधारा कर पठन की भीये.
परम पूज्य श्री कहाननी ऋषिजी महाराज सम्पदायकेवालग्रह्मचारी भनि श्री अमोलकऋषिजी ने सीर्फ तीन वर्ष में ३२ ही शास्त्रों का हिंदी भाषानुवाद किया, उन ३२ ही शास्त्रों की १०००१००० प्रतों को सीर्फ पांच ही वर्ष में छपवाकर दक्षिण हैद्राबाद निवासी राजा बहादूर लाला
मुर्खदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी ने सब को उस का अमूल्य लाम दिया है !
* प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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