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सप्तदश-चंद्रप्रज्ञप्ति सूत्र-षष्ट उपाङ्ग 4828
चन्द्रप्रज्ञप्ति सूत्र की प्रस्तावना देवाधिदेवं जिनं नत्वा, सद्गुरू ज्ञान प्रसादते!चन्द्र प्रज्ञप्ति सूत्रस्य वार्तिकं कुरुते मया ॥१॥ १ सर्व देवों के देव श्री जिनेश्वर भगवन को नमस्कार करके श्री सद्गुरु .महाराजने दी हुई ज्ञान रूप प्रसादी के प्रसाद कर यह छठा अंग चन्द्रप्रज्ञति शास्त्र का हिन्दी भाषानुवाद करता हूं. ॥१॥ य ज्ञाताजी शास्त्र का उपांग कहा जाता है. ज्ञाता सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध का अध्ययन चन्द्रमा का है तथा दूसरे श्रूतस्कन्ध में चन्द्रमा की अग्रपहिषीयों के नाम मात्र व पूर्वभव की करणीका कथन किया है, वह चन्द्रमा किस प्रकार ऋद्धिवाला है. जिस का मंडल,गति,गमन, संवत्सरों,वर्ष,पक्ष, महिने, तीथि, नक्षत्रों: काल प्रमाण कलोपकुल नक्षत्रों ज्योतिषी के मुख वगैरह बहुत विस्तार से वर्णन किया है. यह चन्द्रप्रज्ञप्ति सूत्र कैसा प्रभाविक (चमत्कारी) व कितना गहन हैं यह कुछ जैनों से छिपा नहीं है बडे २ महात्मा साधुओं भी इस का पठन मात्र करते अचकाते हैं. जिन २ ने इस का पठन किया उन २ ने इस के चमत्कार देख ऐसी दंत कथाओं भी बहससी प्रचित है. इस से सहज भान होगा कि इस को लिखना
और छपा के प्रसिद्धी में लाना यह कितना विकट काम है. सामान्य पुरुष से हो सकता है क्या? ऐसे दुष्पाप्य शास्त्र को आज हिन्दी भाषानुवाद युक्त प्रसिद्धी में रखने जो मैं समर्थ होता हूं यह प्रवल प्रताप कच्छ देश न करता आठ कोटी वडी पक्ष के प्रतापी परमपूज्य श्री कर्मसिंहजी महाराज के जेष्ट
Bo3gp 4882- प्रस्तावना 48488
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