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१० अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
चारं चरति, तयाणं दिवसप्पमाण भाणिय ॥ से पविसमाणे मरिए दोच्चपि अहोरत्तंसि दाहिण जाव पदेसाए बाहिरं तच्चं उत्तरं अहमंडलं संठिइ उवसंकमित्ता चारं घरति, ता जयाणं सूरिए बाहिरं तच्चं उत्तरं अहमंडलं संठिई उवसंकमित्ता चारं चरति, तयाणं रातिदिवसप्पमाणं तचे भागियत्वं ॥ एवं खलु एएणं उवाएंणं पविसमाणे सरिए तयाणं रातिदिवसप्पमाण तंचव भाणियन्वं, ततं अद्ध
मंडलं संठिइ, संकममाणे २ उत्तगए जाव पदसाए सवभंतरं दाहिणं अद्धमंडल चलता है तब एक महू के एकमठिये दो भाग कम अठारह मुहूर्त की रात्रि होती है और दो भाग अधिक का दिन होता है. इस प्रकार वह प्रवेश करता हा सूर्य दमरी अहोरात्रि को दक्षिण दिशा के अंतर भाग से उत्तरादशा के अर्धभाग के आदि प्रदशपर बाहिर के तीमरे मंडल के उत्तगर्ध मंडलपर मस्थित हो उपमंक्रम कर चाल चलना है उम समय एकसाठिये चार भाग कम अठारह महून की रात्रि होती है और चार भाग अधिक बारह मुहू का दिन होता है. इस तरह प्रवेश करता हुवा सूर्य प्रत्येक दो योजन व एक योजन के एक मठिये अडतालीम भाग जितना क्षेत्र संक्रप कर अनंतर मांडले में प्रवेश करता हु सूर्य एक अहोरात्र दक्षिणार्ध मंडलपर एक अहोरात्र उत्तरार्ध
प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी उमाप्रमादजी.
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