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________________ + सूत्र समदश चंद्र प्राप्ति सत्र-पष्ट उपाङ्ग दाहिण पुरथिमेणं वितिक्य; उत्तरपुरत्यिमणं आवरिक्ता दाहिणपञ्चत्थिमेणं वितिवयति ता जयाणं उत्तरपुरस्थिमेणं चदे उबदसति दाहिण पत्थिमेणं राहु ॥ ९ ॥ ता जयाणं गहु आगच्छमाणेवा गच्छमाणेबा विउव्वेमाणवा परियारेमाणेवा चंदस्मलेसे आवरेमाणे चिटुति तयाणं मणस्मलोगे मणुस्सा वयति एवं खलु राहुणा चदे।। सरेवा गहिए, एवं ता जपाणं राह आगच्छमागेवा गच्छमाणवा जाव परियारेमाणेवा चंदस्सवा सू रस्स लस्सा आवरेत्ता पासणं वितवयति तयाणं मणुस्सलोगे मणुस्सावयंति एवं खलुचंदेवा सूर्य दीख ता है और वायएयून में रहु दीवाता है. जब दक्षिण पश्चिम नैऋत्य कूल में से चंद्र सूर्य की या को ढक कर उत्तर पूर्व (ईश नकून ) में जब राहु जाता है. तब नैऋत्यकून में चंद्र सूर्य दीखाते ज्य पार ईशान में राहु रहता है. जन्म वायव्यसूत्र में चंद्र सूर्य की लेइया ढककर अग्निकून में रहु जाता है वापव्यकून में चंद्र सूर्य दीखाते हैं और अशिकून में गा रहता हैं. जब ईशानकून में चंद्र मूर्य की लेश्या ढककर नैऋत्यकून में राहु जाता है. तब ईशा-कून में चंद्र मूर्ष दीखाते हैं और नैऋत्यकून में गहु रहता हैं. ॥ ॥ जब राहु जाता आता हुवा रिक्षणा करता हुवा या परिचारणा करता हुवा चंद्र अथवा मूर्ष की लया को आवरण करता हुवा रहता है त मनुष्यों कहते हैं कि राहुने चंद्र व सूर्य को ग्रहण किया. जब राह नावे आत, विकुर्वणा करने अथवा परिचारणा करते चंद्र सूर्य की लेश्या का ++8% बीपका पाहुड FREE + 467 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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