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॥ विंशतितम प्राभृतम्। ता कहते अणुमावे आहितेति वजा ? नत्थ खलु इमाओ दोपडिवचीओ पण्णत्ताओ तंजहा. तत्थणं एगे एव माहंसु-चंदिम सरियाणं नो जीवा अजीवा नो घणझ. सिरा, कायरबोंदिधरा कलेबराणस्थिणं तसि उहाणेतिवा कमेतिवा क्लेतिवा वीरिएतिबा परिसक्कार परकम्मेतिवा, ते नो विजांत लवंति नो असणि लवंति ३३। नो थगि लति अहेणं बादर काइयाए समच्छंति,अहेणं बादर वाउयाए समुच्छितिचा ..... विजय लवंतिवा असणि लवंति थगियंपि लवति ॥ ॥ एगे पुण एवमाहंसु ता . चंदिम सूरियाग जीवा नो अजीवा घणा. णो झानिरा बादर बौदिधरा कलेवरा अब यसमा पाहुडा कहते हैं. अहो भगवन् ! अनुभाव कैमे कहा ? अहो गौतम ! इस विषय में अन्य तीथि की प्ररूपणा रूप दो परिवृत्तिों कही है. कितने ऐमा कहते है कि चंद्र सूर्य जीव नहीं परंतु अजीव हैं, घनिविड नहीं हैं परंतु भूमिर पाले हैं बादर शरीर धारण करेवाल कलेवर मात्र हैं.
६. उत्था . कर्म, बल, कार्य व पुरुषात्कार पराक्रम नहीं है. विद्यत्ममान चेन परतने हैं, असंही जैसे ही बोली, बर्षा जले गरिव नहीं करते हैं, परंत बादर काय अथ 1 वादर वायु काया में से संपूच्छिमपने उत्पन्न होकर विद्यत्वमान प्रवर्तते हैं यावत् मेघ गर्जना करते हैं. दूसरे ऐसा कहते हैं कि चंद्र सर्य जोर हैं परंतु अजीव नहीं है. धन निषिद्ध है परंतु पोलारवाले नहीं हैं. बादर शरीर के धारन
बीमवा पाहुग"
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