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संठाणं सांठति विउबणमिट्टिपत्तेसुवि. चंदेदेवे २ आहितेति बदेजा ॥ इति तेरसमं पाहुडं सम्मत्तं ॥ १३॥ . . * * * *
अनुवादक-चालनमचारी मुनि श्री अमोलक पनी
इचंद्र का पर क्षेत्र चलकर १७ भाग ६७ या १८ भाग ३१ ये अग्नि कून में मर्य का पर क्षेत्र चलकर वंद्र मास पूर्ण करे. और नैऋत्य कून से निकलता चंद्र ३॥ भाग ६७ या नैऋत्य कून में चंद्र का पर क्षत्र व १७ भाग ६७ या १८ भाग ६१ या वायव्य कुन के सूर्य का पर क्षेत्र चलकर चंद्र मास पूर्ण करे. दूसरी वक्त २६ भाग ६७ ये नाता हुवा चंद्र १४ वे मंडल इस प्रकार स्वयमेव प्रवेश कर चाल चलकर नक्षत्र मास संपूर्ण करे. इस प्रकार चंद्र मास में गमन की वृद्धि अनवस्थितपना से जानना. के विमान व मंडल के संस्थान कैसे प चंद्र के देवता की स्थिति कैसी है ? चंद्र का देव विकुर्वणा ग्रहण करता हुवा प्रसता है. यों तेरहवा पाहुडा संपूर्ण हुवा ॥ १३॥
०.प्रकाशक-राजाहादुर लाला मुखदेवसहायजी वाला
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