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________________ 12 ३४४ 44 अनावदक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषि सत्तसट्टी भागाति जाति चंदे परत्सचिण्डप डेचरति, तेरस सत्तसट्ठी भागाई जातिंचदे भप्पणो चेत्रविण पडिचरति ता दोच्चायणगते चंदे पचत्थिमाते भागात निक्खममाणे चउप्पणे जातिचंदे, परस्सचिण्हंपडि घरांति,तेरस भागाति जातिचंदे १३ भाग ६७ या प्रथम अया में जाता हुवा और दूसरी अयन में ५४ भाग ६७ या चलता हुवा ऋत्य कून के पनरहने मंडल पर जाने सो पनरहरा मंडल अध चंद्र का जानना. १३ भाग ६७ या जाते चंद्र अपरा मंडल क्षेत्र में चले अर्थ त् ऋत्य कून के पारवे मंडला से नीकलता हुवा ईशान कून के च उदर व मंडल पर ज ते १३ भाग ६७ यसरः के मंडल के क्षेत्र पर चले इन से ईशान कून के चंद्र के ईशान कून से एकी मंडल और नैऋत्य कून में एक मंडल जानना. दूसरी अगन में गया हुवा ट्र ५४ भाग ६५ या शेष रहने पर प्रथम अयन संपूर्ण हुए पीछे मरी अयन में रहा हुग पश्चिम के भाग से (ऋत्य कू से चंद्र गफलता हुग ५४ भाग ६७ या अन्य चंद्र मंडल के क्षेत्र में चलता है। अर्थात् नैऋत्य कून में में चंद्र नीकल कर १३ भाग ६७ या प्रथम अयन में चला. और ५४ भाग ६७ या दूर्ग अयन में चलना ईशान कू। में पन्नरह वे मंडल पर पहू 1. यह पन्न हवा मंडल अन्य चंद्र का जाना. यहां १३ भग ६७ या चंद्र अपना क्षत्र में चले, अर्थात् ईशान कुन से नीकलता हवा ऋत्य के च उदह वे मंडर पर मात १.३ भाग ६७ या स्वतः के क्षेत्र में चले, इस से नैऋत्य कृन के चद्र प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी. । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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