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________________ ३४२ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + तं पढमायण गते चंदे उतरद्धे भागाए तेपविसमाणे छ अहमंडलातिं तेरससत्तसट्ठि भागाई अह मंडल जातिं चंदे उत्तराते भागाते पविसमाणे चारं चरति, कतिराति खलु ताइ छ अद्ध मंडलातिं तेरस सत्तसट्ठी जाव पाविसमाणे चारं चरति? इमाणि खलु ताई छ अद्धमंडलाइ जाव चारं चरति तंजहा ततिए अद्ध मंडले पंचमे अद्ध मंडले, सत्तमे अहमंडले, एक्कारसमे अद्धमंडले, तेरसम, अद्धमंडले पारसमस अद्धमंडलरस तेर ससत्तसट्ठी भागाति एताणि खलु ताई छ अद्ध मंडलातिं तेरस सत्तसट्ठी भागाति प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी जाते समर्श कर चाल चलते हैं ॥३॥ प्रथम अथन में जाते उत्तरार्ध भाग में प्रवेश करता हुवा अर्थ ईशान कूम से नैऋत्य कून में जाता दुगा चंद्र । अर्थ मंडल १३ भ ग ६७ ये इतना मंडल पलता है. अहो भगवन् ! चे छ अर्थ मंडल व १३ भाग ६७ ये कौनसे २ हैं ? अहो गौतम ! तीमग, पांचवा,.. सातवा, नवमा, इग्य रहवा, तेरहवा ये छ और साहवे मंडल का ६७ या १३ भाग स्पर्श. इस तरह उक्त छ अर्ध मंडल व १७ ये भाग में प्रथम अयन बनता हुवा ईशान कू। मे त्य कून में प्रवेश करना हुवा चाल चलना है. यों यावत् प्रथम १३ नक्षत्र अर्थ माम में चंद्र अयन संपूर्ण हावे. जम्बूद्वीप में दो चंद्र के मंडल हैं जिन में से एक के दक्षिण में नैऋत्य कून में १५ मंडल है और दूसरे के ईशान कून में Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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