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________________ 11 वदेजा ॥ तस्य खलु इमे छ ओमरता पणत्ता, तेजहा-ततियपत्रे, सत्चमेपध्वे, कलन सुदी १० के चग्य समय में ऋतु का चरम ममय भीमा कर पूर्ग है.वे. पावस बसंत ऋतु युा के पांवो सासर के सो पर्व पूर्ण हावे यह वैशाख शुद्ध १२ करम समय में ऋत का चरम समय भोगव वर संपूर्ण होने. छठ ग्रंमत युग के पांचोकार चैवीप में पूर्ण होवे. यह प्रथा अशड शुदी १४ के चप ममय ऋतु का चरम समग भांगर कर पूर्ण हावे. यह छ ऋतु यम के चम पांवर संत्रस्पर की हुई. युग आदित्य की तोम ऋनु होवे और एक २ चंद्र संवत्सर का भी छ ऋतु हाने. एक २ ऋ द्र की ६२ तीथा भोमन कर पूर्ण होवे. इस तरह एक युग में tच प्रापट्ऋतुच वर्ष का, पांच श.द. पांच हमंत, पांच वसंत व पांच ग्रीष्म ऋतु यहा पूर्वाचायोने सूर्य का कथन किया है. भाइचः दो मासाय । एगह भो अह रत्ता ॥ १ए आइचउत्तं । उ परिणाम जिणारिति ॥ अर्थात् आदित्य के दो मास या एकसठ अहोर विभादित्य ऋत परिणमा और मीर उर अयणं । पग पगरसगुग्ण ॥णियमा निहि लिक्विजिदिने बाटो भाग परि E ॥ अथ-सर्य संबंधो ऋतु ने कालने का अयन में जो पर्व संख्या होवे उसे पत्रह से गुना करना इसमें जो तीथी आवे उसमें से बासाठये भाग कम करना अर्थात् एकताथी में एक याग यो । 17तीची वासट माग कम करना. वासद भाग का एक दिन होने से ६१ दिन गिना जावे. इस तरह यह बालब्रह्मचारी मा- श्री अमोलक ऋषिकी। ..शा-राजाहदुर लाथ सुखदेवर mawwwmwww Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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