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________________ सूत्र सप्तदश चंद्र प्रज्ञप्ति-सूत्र षष्ठ-उपाय 44 आदि गणिमागे सातिरेगं एगुणंसट्ठि रातिंदियाई रातिदियग्गेणं आहितेति हो. दूसरी वर्षा ऋत युग के प्रथम संवत्सर के सातवे पर्व में पूर्ण होवे. यह कार्तिक वदी ३ के चरम { समय में ऋतु का चरम समय भोगव कर पूर्ण होवे. तीसरी शरद ऋतु प्रथम संवत्सर के अग्यारव पर्व में पूर्ण होते. यह पोष वदी ५ के चरम समय ऋतु को चरम समय भोगव कर संपूर्ण होवे. चतुर्थ हेमंत ऋतु 'युग के प्रथम संवत्सर के पन्नरवे पर्व में पूर्ण होवे. यह फाल्गुन वदी ७ के चरम समय में ऋतु का चरम { समय भोगवकर पूर्ण होवे. पांचवी वसंत ऋतु प्रथम संवत्सर के १० वे पर्व में पूर्ण होवे. वह वैशाख बदी ९ के चरम समय ऋतु का चरम समय भोग कर पूर्ण होवे. छटी ग्रीष्म ऋतु युम के प्रथम संवत्सर के तेवीस पर्व में पूर्ण होवे. अशा वदी ११ के चरम समय में ऋतु का चस्मः समय भोगवकर संपूर्ण ( होवे. अब चरम पाँचवा संवत्सर में छ ऋतु प्ररूती है. प्रथम प्रवृटू ऋतु युम के पांचो संवत्सर में चैथे पर्व में पूर्ण होवे. यह भाद्रपद ख़ुदी ४ के चरम समय में ऋतु का भोगवकर संपूर्ण होवे. दूसरी वर्षा ऋतु आठवे पर्व में पूर्ण होवे. यह कार्तिक शदीद के चरम समय में ऋतु का चरण समय भोगवकर संपूर्ण होवे. तीसरी शरद ऋतु युग के पांचवे संवत्सर के बारहवे पर्व में पूर्ण हांवे यह पैष शुड़ी ८ के चरम समय में ऋतु का चरम समय मेगन कर संपूर्ण होवे, चौथी हेमंत ऋतु युग के पांचत्रे संवत्सर के सोलहवे पूर्व में पूर्ण होत्रे, यह समय Jain Education International For Personal & Private Use Only * 484 बारहवा पाहुडा 4448 ३१९ www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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