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मुनि श्री अमालक षिको
10 ता तिण्णि स्टे रातिदियसते, रातिदियग्गेणं आहितति देजा। तीसेणं केवतिए मुहत्तग्गेणं
आहितेति वदेज्जा ता दसमुहुत्ता सहस्साइं अट्ठसयातिं मुहुत्तग्गेणं आहितेतिवदेज्जा,॥४॥ ता एतेसिणं पंचण्हं संवच्छराणं चउत्थस्स आदिच्चसंवच्छरस्स आदिच्चेमासतिसती मुहुत्ते पच्छा? तीसं राइंदिया अवड़ भागं रातिदियरस रातिदियग्गेणं आहितेति वदेजातीसेणं केवतिया मुहुत्ते पुच्छ! ? ता णवपण्णरस मुहुत्तसए मुहुत्तग्गेगं आहितेति वदेज्जा ?
ताएतसिणं अहादुवालस खुत्तकडा आदिच्च संवच्छरे तीसेणं केवतिए राइंदियसए अर्थ
संवत्सर की स्तिनी अहो रात्रि होवे ? अहो. गौतम ! ३६० अहोरात्रि एक ऋतु संवत्सर की - होवे. अहो भगवन् ! एक ऋतु मंत्र के कितने मुहूर्त होते हैं ? अहो गौतम ! एक ऋतु संवत्सर के १०८०० मुहू हवे. एक ऋतु मास के ९०० मुहूर्त है उसे १२ गुना करने से इतने होते हैं.॥ ४ ॥ अहौ भगवन् ! इन पांच संवत्सर में चौथा आदित्य संसत्सर का आदित्य मास की तीस मुहूर्त की अहोरात्र के प्रमान से कितनी अहोरात्र होवे ? अहो गौतम ! एक आदित्य मास के ३०॥ अहो रात्रि हवे क्यों कि युग के १८३० दिन हैं और आदित्य.मास ६० हैं. अहो भगवन् !. एक आदित्य मास के कितने मुहूर्त होते हैं ? अहो गौतम ! एक आदित्य मास के ९१५ मुहूर्त शेते हैं, ३०॥४३०=११५..
• प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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