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सहस्साति छच्चपण्णवीसे मुहुत्तसए अहसय बावट्ठीभागा मुहुत्तस्स मुहुत्तग्गेणं
आहितति वदेजा ॥ ३ ॥ एते सणं पंचण्डं संबच्छराणं तच्चस्स उउसवच्छरस्स उउमासे तीसति मुहत्तेणं अहोरत्तेणं गणिजमाणेणं केवतिय रातिदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? तातीस रातिदिए रातिदियग्गेणं आहितेति वदेजा ॥तीसेणं केवतिए मुहुत्ते सए पुच्छा ? ता नव मुहत्तसताई मुहत्तगण आहितेति वदेज्जा ॥ ता एसणं अहा दवालस खत्त कड। उउसवच्छरे, तीसेणं केवतिएरातिदियगोणं आहिति वदेजा.
ना जगा
सप्तदश चंद्र प्रज्ञाप्त सूत्र षष्ठ-उपाङ्ग
अहो भगवन! एक चंद्र संबर के कितने महत कहे? अहो गौतम : एक चर संसर के १०६२९ मुहूर्न होते हैं. एक चंद्र पास के ८८५ मुहर्न हैं उसे बारह गुना करने से इतने हाते हैं. ॥ ३ ॥ अहो भगवन् ! इन पांच संबस्तर में तीसरा ऋतु मंदतार का ऋतु मास तीस मुहूर्त की अहोरात्रि के प्रमान स गिनते कितने रात्रिदिन में पूर्ण होवे ? अहो गीतम! ऋतु मंवत्सर के ऋतु मास की. तीस अहोरात्रि है. एक युग के १८३० रात्रि दिन है, ओर ऋतु मास ६१ है, इस से ३० अहोरात्र होते. अहोई भगवन् ! एक ऋतु मास के कितने मुहूर्त होते हैं ? अहो गौतम ! एक ऋतु मास के ९०० मुहूर्त होते हैं." ३.४३० =९०० एक ऋतु मास को बारह गुना करने से एक ऋतु संवतार होवे. अहो भगवन् एक ऋतु
4800 बारहवा पाहुडा 1824234
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