SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 312
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २९७ सहस्साति छच्चपण्णवीसे मुहुत्तसए अहसय बावट्ठीभागा मुहुत्तस्स मुहुत्तग्गेणं आहितति वदेजा ॥ ३ ॥ एते सणं पंचण्डं संबच्छराणं तच्चस्स उउसवच्छरस्स उउमासे तीसति मुहत्तेणं अहोरत्तेणं गणिजमाणेणं केवतिय रातिदियग्गेणं आहितेति वदेज्जा ? तातीस रातिदिए रातिदियग्गेणं आहितेति वदेजा ॥तीसेणं केवतिए मुहुत्ते सए पुच्छा ? ता नव मुहत्तसताई मुहत्तगण आहितेति वदेज्जा ॥ ता एसणं अहा दवालस खत्त कड। उउसवच्छरे, तीसेणं केवतिएरातिदियगोणं आहिति वदेजा. ना जगा सप्तदश चंद्र प्रज्ञाप्त सूत्र षष्ठ-उपाङ्ग अहो भगवन! एक चंद्र संबर के कितने महत कहे? अहो गौतम : एक चर संसर के १०६२९ मुहूर्न होते हैं. एक चंद्र पास के ८८५ मुहर्न हैं उसे बारह गुना करने से इतने हाते हैं. ॥ ३ ॥ अहो भगवन् ! इन पांच संबस्तर में तीसरा ऋतु मंदतार का ऋतु मास तीस मुहूर्त की अहोरात्रि के प्रमान स गिनते कितने रात्रिदिन में पूर्ण होवे ? अहो गीतम! ऋतु मंवत्सर के ऋतु मास की. तीस अहोरात्रि है. एक युग के १८३० रात्रि दिन है, ओर ऋतु मास ६१ है, इस से ३० अहोरात्र होते. अहोई भगवन् ! एक ऋतु मास के कितने मुहूर्त होते हैं ? अहो गौतम ! एक ऋतु मास के ९०० मुहूर्त होते हैं." ३.४३० =९०० एक ऋतु मास को बारह गुना करने से एक ऋतु संवतार होवे. अहो भगवन् एक ऋतु 4800 बारहवा पाहुडा 1824234 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy