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ता कहते भोयण आहितति वदेजा ? ता एतेसि अट्टावालाए मक्खत्ता कत्तियाहि दहिणा भोच्चा कजं साहेति ॥ १ ॥ रोहिणीहि वसभमंसंभोच्चा कजं साहेति ॥२॥ मिगसिरेणं मिगर्मसं भोच्चा कजं साहति ॥ ३ ॥ अदाहिं णवणीएहिं भोचा कजं
साहति ॥ ४ ॥ पुण्णवसुणा घएणं भोच्चा ॥ ५ ॥ पुसेखीरेणं भोच्चा ॥ ६ ॥ है असिलेसाहिं दीवग मंसेण भोच्चा ॥ ७ ॥ महाहिं कसारि भोच्चा ॥ ८ ॥ पव्वा
अब सतर हवा अंतर पाहुडा कहते हैं-अहो भगवन्! आपके मत में नक्षत्रो में किस प्रकार भोजन विचार कहा है ? अर्थात क्या भोजन कर जावे तो कार्य सिद्धि होने ? अहो शिष्य ! इन अट्ठावीस नक्षत्रों में से १ कृत्तिका नक्षत्र के दिन दधि मिश्रित भोजन कर जावे तो कार्य सिद्धि होवे, २ रहिणी नक्षत्र हो। तब चूत का भोजन कर जावे तो कार्य सि होवे. ३ प्रगशर नक्षत्र मिस दिन होवे, उस दिन कस्तूरी का भोजन करे तो कार्य सिद्धि होवे ४ आद्र नक्षत्र जिस दिन होवे उस दिन नवनीत [ मकावण ] का भोजन कर जाये तो कार्य सिद्ध होवे, १५ पुनर्वसु नक्षत्र जिम दिन होवे उस दिन बन का भोजन करक जाव तो कार्य सिद्धि हो १६ पुष्य नक्षत्र जिस दिन होघे उस दिन खीर का भोजन वर जावे तो कार्य सिद्ध होवे ७ अश्लेषा नक्षत्र जिस दिन होवे उस दिन कवच सिंग अथवा कमल का भोजन कर जावे
47 अनुमदन-पालब्रह्मचारीमान श्री अमो के ऋषिजी
प्रकाशक-राजाबदुर लाल सुखदवमहायजी ज्वालाप्रसाद ने .
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