________________
२२७
रयणणिं णामधिजाति ॥२॥ इति दसमस्स यउद्दसमं पाहुडं सम्मतं ॥१०॥३४॥ ता कहते तिही आहितेति वदेजा ? तत्थ खलुइमा दुविहा तिही पण्णत्ता तंजहा दिवसानिहिव, राहीतीहया ॥१॥ ता कहते दिवस तिही आहितेति वदे जाता एगभेगस्सणं
पक्खस्स पण्णरस दिवस तिही पण्णत्ता तंजहा पंदे, भद्दे, जए, तुच्छे, पुणे, यह दशवा पाहुडा का चउदहवा अंतर पाहुडा संपूर्ण ॥ १० ॥ १४॥ . . है . अब पनरडवा अंतर पाहुडा कहते हैं. अहो भगवन् ! आप के मत में तीथि कैसे कही ? भगवान उत्तर देते हैं कि मर्य अहो राधि बनाता है और चंद्र तीथी बनाता है. यह चंद्र मंडल के तेज की हानि
द्धि कही. यह चंद्रमा कैसा है। उक्तंच तिरियकुमय सरिसापभस्स चंद्रस्म राति ॥ सुभगस्स लोए तिरिति मनियम भणियंबुढि हाणिए ॥१॥ अर्थात् कुमुद समान जिस की प्रभा है ऐसे सौभाग्यवान चंद्र की
लोक में हानि वृद्धि जानना. राहुका विमान के आवरण से चंद्र के विमान का तेज की हानि वृद्धि होने यह राहु दो प्रकार का कहा है ? धूवराहु और २ पर्वसह. इस में पर्वराहु का कथन क्षेत्र समास में कहा है सो वहां से जानना. और वराहुका विमान कृष्ण है. पह चंद्रमा के विमान नीचे चार अंगुल के अंतर से चलता है. और तेज की हानि वृद्धि करता हैं. शुद १६ की तीथी में संपूर्ण राहु के। से आवरण रहित होथे और पदी १ से वदी तक चंद्रमा के विमान की कलापर राहुका विमान आपरण
श-चंद्रमामि सूत्रपा-मान
शवा पाहुड का पत्ररहवा अवर पाहुडा 42+
--
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org