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________________ - त्र २०६ 47 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी पण्णत्ते ॥ २४ ॥ जेट्टा तक्रवत्ते गयदंत संठिए पत्ते ॥ २५ ॥ मुले मक्खत्ते विच्छुपलगोल मंठिने ॥ २६ ॥ पुवा गाढा णवत्तेय पविकम सांठते पगते ॥ २६ ॥ उत्तराभाढा पक्खत्ते सीहाणीसाति संठिते पण्णत्ते ॥ इति दसमस्स अट्रम पाहड मम्मत्तं ॥ १० ॥८॥ x + ता कहते णक्खत्ते तारगा आहितेति वदेजा ? ता एएसिणं अट्ठाविसाए णखत्ताणं अभिए णखत्ते तितारे पण्णत्ते ॥ १ ॥ सवणे पक्खत्ते तितारे पण्णत्ते ॥ २ ॥ धभिट्टापंचतारे ॥ ३ ॥ सयभिसया दपतारे ॥ ४ ॥ पुषभदवया दुतारे ॥॥ उत्तरभद्दवया दुलारे ॥ ६॥ खेति बत्तीस तारे पण्णत्ते ॥ ७ ॥ भस्मिणि तितारे संस्थान से २४ अनुराधा नक्षत्र एकावलि के संस्थान है : २ ज्येष्ठा नक्षत्र गजदंतके आकारसे है.२६मूल नक्षत्रविच्छ के आकार से है. ६७२७ पूष हा नक्षत्र स्वीकी च ल के का २८ उत्तराषाढा नक्षत्र बैठे सिंह, आकासे काय डडे . अठ.. श्राप प्रमा र अब नववा अंतर पाहुडा कहते हैं. अहो भान् ! आप के प्रत में नक्षत्र के तारें कितो २ कह हैं ? अहो शिष्य ! उक्त अठावीस नक्षत्रो में से . अभिजित के तीन तारे, २ श्रवण नक्षत्र के तीन तारे, १३ धनिष्टा के पांच तारे, ४ शतभिषा नक्षत्र के १०० तारे, ५ पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के दो तार, ६ उत्तरा rammaromanmmmmmmmmmmmna मानक-राजावहादुर लाला मुखदवसहायजी Anirurammar सादजी. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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