________________
श्री अमोलक ऋषिजी +
ता कहते णक्खत्ते संट्ठिति आहिनेति वदेजा ? ता एएसिणं अट्ठाविसाएं णवत्ताणं अभिए णक्खत्ते गोसियावाल संठिए पण्णत्ते ॥ १ ॥ सवणे णखते काहार संठिए पण्णत्ते ॥ २ ॥ धणिट्टा गक्खते सउगी पलिग संठिए प • ॥ ३ ॥ सनभिसया णक्खत्ते पुफोरयार संहिए पण्णत्ते ॥ ४ ॥ एव पुन्वभवया णक्खत्ते उत्तरभद्दवया णक्खत्ते अडवः वि सठिए पण्णत्ते ॥ ५ ॥ ६ ॥ रेवति नक्खचे नावा सठो ॥ ७ ॥ असिणि आसक्खंधग संठिए ॥ ८ ॥ भरणि णक्खत्ते भगसंठिए पत्ते ॥ ९ ॥ कत्तिया पक्खत्ते बुरघरग संठिए ॥ १० ॥ रोहिणि णक्खत्ते
अव दशा प डडे का अठा अंतर पहूडा कहते हैं. अहो भगवन् ! आपके मन में नक्षत्र के संस्थान किस प्रकार के हे हैं । को? अहो शिष्य ! इन अठ्ठावीस नक्षत्रों में से १ अभिजित नक्षत्र गोशंग के आकार स है. आपण नक्षत्र कावड के आकार से है, धनिष्ठा नक्षत्र पक्षी के पीजर के आकार से
४ शतभिषा नक्षत्र पुष्प पेच र अर्थात् पुष्प की राशि के आकार से है, २.६ पूर्वाभाद्रपद व उत्तरा भद्रपद दोनों नक्षत्रों अर्थ वावडी के आकारवाले हैं, ६६७ रेषति नक्षत्र नात्रों के साकार से है, 8883 ८ आश्विनी नक्षम अश्वस्कंध के आकार से है, . भरणी नक्षत्र स्त्री की योनि के आकार से है, . १. कृतिका नक्षत्र
•प्रकावक-राजाबहादुर लामा मुखदेव सहायजी ज्वालाप्रमादर्ज .
अर्थ
42 अनुवादक-नागवार
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org