________________
सन्न
48 अनुवादक-पालब्रह्मचारीमान श्री अमोलक ऋषिजी :
नो कुलाबकुलं ॥ कुलं जोएमाणे अस्सिणि णक्खत्ते जातेति उबकुलं जोएमाणे रेबति णवत्त जोतेति आमाईणं पुणिमं कुलंवा जोतेति, उवकुलंवा जोतेति. कुलणवा जुत्ता उरकलेणा जुत्ता आमाईणं पूण्णमा जुत्ताति वत्तव्यं सिया, जाय
૧૮૨ एएणं अभिलावण पासिंपाणिमाए जट्टामूलं पोणिमाए कुलाकुलं भाणियव्वा अव
सेसा कुलाबकुला त्थि जाव असाढी पुष्णिमा जुत्ताति वत्तव्वं सिया ॥ ३ ॥ पूर्णिमा की वक्तव्यता हुइ. इसी अभिलापसे कार्तिक मामकी पूर्णिमा में कुल नक्षत्र कृत्तिका और उपकुल नक्षत्र भणि है. मगशर मास की पूर्णिमा को कुल न त्र एगशर का योग होवे और उपकुल नक्षत्र रोहिणी का योग होय. ६ष मास की पूर्णिमा का कर पूष्य नक्षत्र उपकुल पुनर्वसु और कुलोप- भा कुल आद्रा नक्षत्र का योम हाय यावत् ज्येष्ट मास की पूर्णिमा के दिन कुल मूलनक्षत्र, उपकुल ज्येष्टा और कुलोपकुल अनुराधा. १ श्रावण २ भाद्रपद ३ पंप और ४ ज्येष्ट इन चार मास की पूनम में कुलापकुल नक्षत्र का योग होवे. शेष मास में कुलापकुल नक्षत्र नहीं है यावत् शब्द से माघ मास की
णमा को कुल मघा और उपकुल अश्लेपा. फाल्गुन मास की पूर्णिमा को कुल उत्तराफाल्गुनी उपकुल पूर्वाफाल्गुनी, चैत्र मास की पूर्णिमा को चित्रा कुल नक्षत्र और हस्त उपकुल नक्षत्र. वैशाख मास पूर्णिमाको विशाखा कुल और स्वाति उपकुल. अषाढ मास की पूर्णिमा को उत्तरापाहा कुल और पूर्वाषाढा उपकुल ॥३॥
• प्रकाशक-नाजाबहादुर लाला मुखदेवसायजी ज्वालाप्रसादजी.
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org