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________________ s wwwm - सप्तदश चंद्र प्रज्ञप्ति-सूत्र षष्ठ-उपाङ्ग ++ बारस उवकुला पणत्ता संजहा-सवणो उवकुलं,पुव्वभद्दवया उवकुलं, रेवति उवकुलं, ___भरणि उवकुल, रोहिणी उवकुलं, पुणवसुउबकुलं, असलेसा उपकुलं, पुवाफग्गुणी उपकुलं, हत्थेउबकुलं साति उवकलं, रोट्ठा उबकुलं, पुवासाढ। उवकुलं ॥ चत्तारि कुलाबकुला पण्णत्ता तंजहा- अभिति कुलाबकुलं, सत्तभिसया कुलावकुलं, अद्दाकुनान नक्षत्र जिस में पूर्णिमा को मूल कुल और १२ अषाढ मास में दो नक्षत्र जिन में पूर्णिमाको उत्तराषाढ कुल नक्षत्र जानना. अब बारह उपकुल नक्षत्र कहते हैं. जो कुल नक्षत्र हैं उनकी पूर्वके नक्षत्र यदि उस मास की पूर्णिमाको आवे तो उपकुल होते हैं तद्यथा? श्रावणकी पूर्णिमा को श्रवण उपकुल, २ भाद्रपद की पूर्णिमा को पूर्वाभाद्रपद है है उपकुल, ३ अश्विन मास की पूर्णिमा को रेवति नक्षत्र उपकुल, ४ कार्तिक मास की पूर्णिमा को भरणी उपकुल, ५ मृगशर मास की पूर्णिमा को रोहिणी उपकल, ६ पोष मास की पूर्णिमा को पुनर्वसु उपकुल, ई १७ माघ मास की पूर्णिमा को अश्लपा उपकुल, ८ फाल्गुन मास की पूर्णिमा को पूर्शफल्गुनी उपकुल. ९ चैत्र मास की पूर्णिमा को हस्त नक्षत्र उपकुल, १० वैशाख,मास की पूर्णिश को स्वाति नक्षत्र उपकुल, ११ ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा का ज्येष्ठा नक्षत्र उपकुल, और १२ अषाढ मास की पूर्णिमा को पूर्वाषाढा उपकुल होते है. अब कुलोपकुल नक्षत्र का कथन करते हैं जो उपकुल नक्षत्र पूर्णिमा को आते हैं उन से पूर्ण के नक्षत्रों " } उस ही पूर्णिमा को कुलोपकुल कहाते हैं वे चार ही नक्षत्र हैं तद्यथा-१ श्रवण मास की पूर्णिमा को अभिजित । दशवा पाहुडका पाँचता अंतर पाहुडा Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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