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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक अपिजी
ता कहते कुला उपकुला,कुलाबकुला आहितेति वदे जा? तत्थ खलु इमा बारस कुला बारस उबकुला चत्तारि कुलाबकुल! पणत्ता ॥ वारस कला तंजहा-धणिट्ठाकुलं उत्तराभवयाकुलं, अस्सिणी कुलं, कत्तियाकुल मगसिरकुल, पुरलोकुलं, महाकुल,
उत्तराफग्गुणी कुलं, चित्ताकुलं, विमाहा कुलं, मुलो कुलं उत्तराषाढा कुलं ॥ ___ अब पांचवे पहुड में कुल, उपकल व दपक नक्षत्र का कहते -हो भगवन् ! आपके मन में कुल नक्षत्र कितने हैं, पर क्षकित है, कुत्रा नक्ष मिन है ? अहो शिष्य ! बारह नक्षत्र कल हैं, बारह नक्षत्र उपकुल हैं और चार नक्षत्र कुपकुछ हैं. जो चारह नक्षत्र कुल हैं जिनके नाम-श्रवण मास के तीन नक्षत्र हैं, जि में पति श्रावण मास की पूर्णिमा को हाये तो कुल, २ भाद्रपद साम में नीन हैं पताको उत्तराभाद्रपद. ३ आश्विन मास में दो नक्षत्र हैं जिनमें पूर्णिमा को अश्विनि नक्षत्र कुर. कात्तिक कृत्तिका कुछ. ५ मृगसर तीन नक्षत्र जिम म पूर्णिमाको पुष्य नक्षत्र कुल, मनद क्षः जि में पूर्णिमा के! 44 क्षत्र कुल, ८ फाल्गुन मास में दो नक्षत्र जिनमें पूर्णिमाका उत्तरा फाल्गुनी कुल ह, २ चैत्र मास में दो नक्षत्र हैं, जिस में पूर्णिमा को चित्रा कुल, १० वैशाख मास में दो नक्षत्रा जिस में विशाखा कुल, ११. ज्येष्ट मास में
प्रकाशक-राजाबहार लालासुखदेव माय बालापमादजी.'
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