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सप्तदश-चंद्रप्रज्ञप्ति सूध षष्ट-पान
तस्सणं सध्यहिटिमातो मूरिएपडिहाओ वहिया अभिणिसट्राहिं लेसाहिणिजमाणीहिं इमीसे रयणप्पभाए पढवीए बह नमरमणिजातो भीम भागातो जाव दितंमारिए उच्चत्तण, एवतिएगार आए अट्ठाए, एगणं छयाणमाणप्पमागेण उमाए एत्थणं से मूरिए एगे पोरमिछ.यं निव्वत्तति ॥ तत्थ जत एक माहमु अस्थिणं से दिवस जसिचणं दिवसंसि सरिए दपारमिच्छापं निम्त्तद तेण एव माहसु ता सरिए तरसणं सन्ध हेट्ठिमाओ सारए पडिहवा बहिया अभिगिसट्टाहि लसाहिं वाहिं तवणिज
माणहिं इमीस रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिजातो. भूमिभागातो जाव अर्थात् जो पदार्थ जितना लम्बा हो उस भे छम्नगनी - या हो. इन में जो अन्यताया ऐसा कहते हैं एक दिन में एक पुरुष छाया सुर्य बनाय उस का कथन इस हेतु मे है कि मप से नीचे रहा हुवा सूर्य
आकार को नष्ट कर वाहिर नीकली हुइ पनीय लेग महित इन रत्नप्रभा पृी के बहुत समरमणीय भूपिभाग में पूर्व दिशा में प्रकाश करता पूमि से उपर आरे यह अर्थ स एकसयाका अनुमान प्रमाण हो.. इस तरह सूर्य एक पुरुष छाया बनाव. जो एमा कहते हैं कि सूर्य दिन में दा पुरुष छाया बनावे उनका कथन इस हतु से है कि सब मे नीच रहा हुवा सूर्य अंधकार नष्ट कर बाहिर नीकल हुई तपती हुई लेश्या सहित इस रसप्रग पृथ्वी के बहुत समरमणाय भूमिभाग मे दिशा में प्रकाश करवा दुवा पूर्व दिशा में)
नाबचा पाहुडा
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