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________________ सत्र अर्थ 42 अनुवादक बालमचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + कट्ठे ते, मुरिए पारसीच्छायं निवत्तद्द आहितेति वदेजा तत्थ खलु इमातो पण्णविलं पडवसीओ पण्णत्ताओ तंजहा तत्थएंगे एवं माहंनु ता अणुसमयमेव सूरिए पोरिसीछा नित्र आहितेति वदेज | एवं एएवं अभिलावेणं जातो चत्र ओय मंठिए रणव पबितीओ, तातो चैत्र यातो जात्र तासु णुमपिणि उमापणिमेत्र भूरिए पोरसीच्छायं निव्वतेति आहितति वदजा, एगे एवं माहंसु ॥ वयं पुण एवं क्यामो " कथेन हुवा ॥ १ ॥ प्रश्न - अहो भगवन् ! आप के मत में सूर्य कितने प्रमाण में पुरुषछाया बनाता है ! अहो शिष्य ! इस में अभ्यनीयों की प्ररूपणारूप पश्चीम पडिवृत्तियों कही हैं तथा १ कितनेक ऐसा कहते हैं कि प्रतिसमय मे सूर्य से नीकलती हुई लेश्या पुरुष छाया बनावे. यहां लेश्या से पारसी छाया होवे इस में कारणकार्य उपचार है. पोरसीछाया को लेश्या बतलाइ क्योंकी क्षण २ में सूर्य अन्य Jain Education International लेश्या बनावे यों इस अभिलाप में यावत् जैसे छठे पाहुडे में प्रकाश के संस्थिति की पच्चीस पडिवृत्तियों कहीं वैसे ही यहां पर भी कहना यावत् प्रत्येक उत्सव अर्पिणी में सूर्य पौग्सी छाया बनाता है इस कथन को मैं इस पर कहता हूं कि जब सूर्य लेश्या छोडना हुआ ऊंचा चढता है छा होन { है अर्थात् लोक व्यवहार में जब सूर्य उदय होव तब छया बडी हावे परंतु पीछे ज्यों ज्यों सर्व चडता जाता है त्यों त्यों छाया हीन होती जाती है. यो मध्यान्ह पर्यंत होती है, और ज्योंर छाया बहती है। ● प्रकाशक- राजाबदुर का सदेवसहाय जी न्वालाप्रसादमी -० For Personal & Private Use Only १४२ www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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