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पोग्गला रियरत लेसं फसति तेणं पोग्गला अत्यंगतिया संतप्पंति, अत्यंगतिया नो
संतप्पति,अत्यंगतिया संतप्पमाणातयाणंतराति वाहिराति पोग्गलाति संतावति अत्थंगतिया . अमंतप्पमाणा तयाणतराइ बाहिराइ पोग्गलाई नो संतावितितिाएम्मणं स संमिए तावखंत्त
एगे एवं माहंमु॥३॥वयं पुण एव क्यामो-ता जातो इमाता चंदिमसरियाणं देवाण विमाणे हिंतो लेसातो बहिया अभिणिसडाआ पयाविति, एतासिणं लेसाणं अंतरेनु अणंतरातो छिन्नलतातो समुन्छति, तएणं ततो छिन्न लसातः समुच्छिन्नातो, समाणितो तेणं
सरति वाहिरातिं पागलातिं संताविति. एसणं सं समिए ताव खेने ॥ १ ॥ ता कति कहते हैं कि जो पुदमा सूर्य की हश्या को सही इनमें से किसक पुराने हैं और कितनेक नहीं! सपते हैं. कितनेक सपने हुवे पुगल दर साहिर के गुद्गल नपाते हैं और कितनक नहीं तपते हुने तंदनंतर बाहिर के पुद्गल नहीं नपाते हैं. यह मामेन मर्यादा ताप क्षेत्र दुवा. इस कथा को इस प्रकार कहता
पहुं कि यह जा चंद्रमूर्य के विमान हैं उन में से लश्या वाहिर नीकलसी है और सन्मुख दिशा में प्रकाश 190 करती है. इन विमान से नीकली हुइ लंग्या प्रांतराओ में अन्य मूल लेश्यां पर करे. अब मूल लश्या में सात
सदनंतर बाहिर के पुदल पाये. यह समित क्षेत्र पर्यादा पने बाप क्षेत्र उत्पन हुवा. यावाप क्षेत्र का
समदश चंद्र प्राप्ति सूत्र-पष्ठ उपाङ्ग 42
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