SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 152
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 4 - be-2A BATRE in Baat पाडवजात,ता जयाणं जीवे मदरस्स पुरथिमेणं पढमै समए अपमाणे पाडवजति,तयाणं पञ्चस्थिमे गवि पढमे समए अपमाणे पडिजति त! जयाणं पञ्चस्थिमिगं पढमेममए अयमाणे, पडिबजाते, तयाणं जयू मंदार उत्त दहिणण अगर कल समयमि पढमे समए अयमाणे टिपुन्न नमानावं . ज , ...हस्से,वामसतसहरसे, पुगपूध,डियंग तडिए, अडडंग,अडडअश्वग,अवे हरगाहहए, उप्पलंगे, उप्पल पउमग १उम, लिगंगेलिगे अस्थिपियरगे अयणियर अउयग, अउए, नउयंगे उए, बूलियंगे चुलिए, सिमपहेलीयग सीलपहे.लया, पलिउम, सागरोधमे, ॥ अयन का प्रथम ममय होना है ता पश्चिम में भी अगन का प्रथम समय होता है. जब जम्बूद्वीप के मेरु पर्वन में पूर्व पश्चिम में अपने का प्रथम ममय होना है तब जम्बुद्वीप के सर दक्षिण में अनंतर पश्च त् कृन । एक ममय पहिले ही ] अया का प्रथम ममप प्रतिपुर्ण हाता है. ऐ है। संवत्सर, युग, वर्ष नर्षशन, सहस्त्र, वर्षशतसहस्त्र (लाख वर्ष) पूग, पू, त्रुटिनांग, शुटित, अडडांग, अडई, अपांग, १ अपपहुगहुहुध, उत्पलांग, उत्तल, पांग, पम, नालनांग, नलिन, अस्तिनीपुरोग, अस्तिनीपुर, मांग, अजय, नययांग, नयय, अलिनांग, चलया, शीपहेलिनांग, शीर्षपलित, पल्योमम सामोपम का aawarannamnnnnnnnamrunanamaniameramanawwar +23. IER । 3 4 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy