SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ म अनुवादक-कलामचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी " 43 'अयानं यच्चस्थिमेणं जहण्णए दुवालस अहच दिवसे,तयाणं जम्बूद्दीवे द्दीवे मंदरास उत्तरेणं दाहिणेणं उक्कानिया अट्ठारम्म मुहुत्ता राइ भवति ॥४॥ता जयाणं जम्बृद्दीवे दाहिणे पासाणं पढमे ममए पडिवज्जति तयाण उत्तरदावि बासागं पदमे समए पडिवजात तयाणं जम्बूद्दीवे होवे मंदररस पध्ययाप पुरस्थिमेण पञ्चस्थिमेण अणंतर पुराकडे काल समयंसि वासाणे पहमे समर पडिजति तयाणं जम्बूद्दीवे मंदररस पश्चयस्स उत्तरदाहिणणं अणंतर उच्चर दक्षिण में उत्कृष्ट अवारह मुहर्त की गति होती है ॥ ॥ जब जम्बुद्वीप के दक्षिणाध में वर्षा मत का प्रथम समय ना है इतना में भी वर्षा ऋत का प्रथम सम होता है, जब उपारदक्षिणार्ध में वर्षा माप न नामक पर्वत में पूर्वपश्चिम के अनर पुराकृत काल में वर्षा ऋतु का प्रथम मयय होला है. अर्थन उत्तरदक्षण के दर सपर में पूर्वपश्चिम का प्रथम समय होता है. अब जम्मूद्वीप में पेश पात मे पूर्व पश्चिम में पकतु का प्रथम मपय होता है तब अनंतर पश्चातकृत समय में वर्षा का पहिला ममय प्रतिपूर्ण होता है. जसे यह वाकाल का कहा वैमे ही समय का कहना, अर्थात् तरं दक्षिण प्रथम ममय तत्पश्चात दुसरे ममय में पूर्व पश्चिमका पहिला समय, ऐसे ही आपलिका उत्तर दक्षिण प्रथम पावलिका का समय हर समय में पूर्व पश्चिम में प्रथम बाबलिका का समय, उत्तर दक्षिण में आणपाणु प्रथम समय (श्वाशोश्वाम) नेत्पश्चात् दूसरे समय में पूर्व पश्चिम में आशु पाणु का प्रथम समय. उत्तर दक्षिण • प्रकाशक राजावाजदुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी . For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy