SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२३ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + अवट्टियाणं तत्थरातिदिया पण्णचा समणाउसो ! एगे एक माहंसु ॥ १॥ एगे पुण एव माहंसु-ताजयाण जंबूद्दीवेदीवे दाहिणढे अट्ठारस मुहुत्ताणतरे दिवसे भवति तयाणं उत्तरद्धे अट्ठारस मुहत्ताणतरे दिवसे भवति जयाणं उत्तरड्डे अट्ठारस मुत्तागं. तरे दिवसे भवति तयाणं दाहिणवि अट्ठारस मुहुत्ताणंतरे दिबसे भवति एवं परिहरियवं सचरस मुहुत्साणंतर सोलसमुहत्ताणंतर पण्णरस मुहुत्ताणंतरे, चउद्दसमुहु त्तागंतरे, तेरसमुहुत्ताणतरे, ता जयाणं दाहिणड्डे घारसमुहुत्ताणंतरे दिवसे भवति, में बारह महूर्त का दिन होने तब उत्तरार्ध में बारह मुहूर्त का दिन और जब उत्तर में बारह मुहूर्न का दिन तब दक्षिणार्थ में भी वारः मुहू का दिन होवे. इस समय जम्बूद्वीप की पूर्व पश्चिम में सदैव पन्नरह मुहू का दिन व पन्नाह मुहर्न की गधि हाती है. यहां रत्रिदिन अवस्थित रहते . २ कितनेक ऐसा कहते हैं कि जा जम्बूद्धप क दक्षिणा में अठारह मुहर्न अंतर ( अठार मुहूर्त में कम) दिन होता है तब उत्तरार्ध अठारह मुहर्न में कम दिन होता है और जब उत्तरार्ध में अठारह मुहूर्त में कम दिन है तब दक्षिण में भी अठारह मुहूर्न कम का दिन होता है. इसी तरह एक २ कम करना दक्षिणार्ध में सत्तरह महतिर दिन हवे तब उत्तरार्ध में सत्तरह महू तर दिन होवे और उत्तरार्ध में सत्तरह मुहूर्तातर • प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवमहायजी ज्वालामसदाजी રાઈ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy