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________________ } "मंडलंजाव चारं चरति तयाणं सबभंतरं मंडलं पणिहाय एगणं तेसौतेराइदिएसएणं एग तेसीतं भागसयं उयाए दिवस खतस्स निटिना राइखेत्तरस अभिवद्वित्ता चारं चाति, अद्वारस तिहि मंडरच्छेत्ता, तयाणं उत्तम कापता उक्कोसिया अट्ठारस मुहुर्ता राई मति जहण्णए दुगलस मुहत्ते दिवसे भवति, एतणं पढमे उम्मासे एमणं जाव पजवासणे ॥३॥ से पविसमाणे सरिए दोचं छम्मासं अयमाणे पढमांस अहोरत्तस मंडलं जाय चारं परति,तयाणं एग भागं उयाए एगेणं राइंदिएणं राइखेचरस निवुद्वित्ता दिवस खेचस्स अभिवहिताचारं घरति, अट्ठारस तीसेहि सएहिं एक मंडल के १८३० भाग में का एक माग प्राश एक रापिदिन में दिन के क्षेत्र में कमी करता और रात्रि मे पहाताना सब से पाहिर मंडल पर रहकर चाल चलता है. मामूर्य सबसे गाभ्यंतर मंडल में नीलकर मप से बाहर के मंडलपर राबर पाक खताtar१८३ रात्रि दिन में एक पहल के १८३० भाग में के १८० भाग प्रकाश का दिन के क्षेत्र में करी कर रात्रि के बढाकर चल पस समय उत्कृष्ट अठा मुन की रात्रि अघन्य सार मुहर्त का दिन होता है. यह पी 31 मास पहिला गम का पर्यवसान हुवा. ॥३॥ वहां से प्रवेश करता दुधा सूर्य दूसरे छमास मे पाता AM पहिली ओरात्रि में बाहिर से अनंतर दुसरे मंडलपर सकर चाल चलता है. उस समय mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmma - aormananenionsannnnnnnn Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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