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सुदने श्री अमोलक ऋषिनी ৪ অক্ষয়
॥ तृतीय प्राभृतम् ॥ .. ता केवतियं ते चंदिम सरियातो भवति उजोविति तबिति पभासेति आहितति वदेजा?
तस्थ खलु इमातो दुवालस पडिवत्तीओ पण्णत्ताओ तंजहा-तत्थ एगे एवमाहंसु ता एग दीवं एगं समुदं चंद मूरिया जान पभासंति हितेति वदेजा,एगे एवमाहंसु ॥१॥ एगेपुण एवभाहंसता तिमिदी लिरिण समुचंदिम सरिया जाव आहितेति वदेजा एगे एबमासु ॥ २ ॥ शेपुण एबभातु ता अट्ठदीचे अट्ठसमुद्दे चंदिम जाव पमासंति, आहितति वदेजा एम एबमाहंसु ॥ ३ ॥ एगेपुण एवमाहंनु-ता सत्तदीवे
अब तीसरा पादुम कहते हैं. प्रभ-अहो भगवन् ! चंद्रमा मूर्य से कितने क्षेत्र में होये, उद्योत करे, सपे व प्रकाश कर ? उत्तर-अहो शिष्य ! यह अन्य बीथि की प्रपना रूप बारह पडिवृत्तियों कही हैं. तद्यथा-वहां कितनेक ऐसा इहो हैं कि संगगा पूर्य एक ई.प व एक समुद्र में यावत् प्रकाश करते हैं कितनेक ऐसा कहते हैं कि चंद्र दूरी भीम राव बुद्र में सात् प्रकाश करतहैं, ३ कितनेक ऐसा कहते हैं. चंद्र सूर्य आउदीप आरास करते हैं, कितनेक ऐसा कहते हैं चंद्र मर्य द्वीप सात समुद्र में प्रकाश करत ई ५ कितनेक ऐसा कहते है कि चंद्र सूर्य दश द्वाप दश समुद्र में प्रकाश करते हैं कितनेक ऐमा कहते हैं कि वारदीप बारह समुद्र में प्रकाश करते हैं, कितनेक ऐसा कहते
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी.
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