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________________ सून अर्थ 42- सप्तदश चंद्र प्रज्ञप्ति सूत्र ष-उपाङ्ग साय सट्ठीभागं सट्ठीभागंच एगसट्ठिए छेत्ता सठिए चुण्णे भागेहिं चक्खुफासं हवमागच्छति, तयाणं अडारस राई भवति दोहिऊणा, दुबालस मुहुचे दिवसे दोहिं ह पत्रिसमाण, सूरिए दचिंसि अहोर तंसि बाहिरं तनं मंडल उनकमिता चारचरति, ता जयाणं मरिए बाहिरं तचं मंडलं जाव चारं चरति, तयाणं पंच जोयण सहस्साति तिष्णिय जोयसर एग ऊणयालीसंच सठीभागे जोयणस्स एगमेगेणं मुहुचेणं गच्छति, वे मंडलपर दृष्टि गोचर होवे. इस समय साठिये दो भाग कम अठार मुहूर्त की रात्रि और दो भाग अधिक बारह मुहूर्त का दिन होवे ॥ ७ ॥ वहां से प्रवेश करता हुआ सूर्य दूसरी अहोरात्र में करके तीसरे मंडलपर रहकर चाल चलता है. जब सूर्य बाहिर के तीसरे मंडलपर रहकर चाल चलता है तब एकमुहूर्त { में ५३०४ योजन चलता है. यह व्यवहार नय से हुवा. निश्चय नय से ५३०४ योजन साठिये ३९ भाग और १८३ के १३३ चूर्णये भाग. बाहिर के दूसरे मंडलपर सूर्य ५३०४ साठिये ५७ भाग और { १९८३ के ६८ चूर्णिये भाग चलता है. उस में से एक योजन के साठिये १७ भाग व १८३ के ११५३ भाग मंद चलने से बाद करते इसने योजन चलता है. उस समय यहां भरत क्षेत्र के मनुष्य को ३२००१६ { योजन साठिये ४९ भाग और एक भाग के एकसठिये भाग के तेवीस भाग इतना दूर से सूर्य दृष्टि में } आवे. यह व्यवहार नय से हुवा. अब निश्चय नय से ३२००० योजन साठिये नव भाग व एकसठिये १५ Jain Education International For Personal & Private Use Only * दूसरा पाहुढे का तीसरा अंत पाहुडा 4 www.jainelibrary.org
SR No.600254
Book TitleAgam 17 Upang 06 Chandra Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages428
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_chandrapragnapti
File Size8 MB
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